काव्य-श्रीमती शैल दुबे

शक्ति स्वरूपा बेटियां

शक्ति स्वरूपा वजूद तुम्हारा
नई सदी ने अब स्वीकारा।
दो ही फूल से महके आंगन,
दोनों बने अब कुल का तारा।
बेटी नहीं बेटे से कुछ कम,
फर्ज नहीं ऐसा कोई, जो कर न सके बेटे के सम।
पर आती है जब ब्याह की बारी
बेटियां सब पर पड़ती हैं भारी।
वधु नहीं नाबालिग कन्या,
फिर क्यों होता ‘कन्यादान’।
यहीं है बेटी-बेटे का अंतर, वधु नहीं है बोझ किसी पर
नहीं किसी पर है आश्रित।
नहीं अब कन्यादान दहेज के
आडम्बर से हो श्रापित।
वधु अब उस वर का वरण करो,
जो ‘मोल-भाव’ बिन ब्याहेगा।
दान का देकर अभयदान
वरदान स्वयं बन जायेगा।
मंगलगान लगे तब प्यारा
शक्ति स्वरूपा वजूद तुम्हारा।


श्रीमती शैल दुबे
दुबे बाड़ा
पावर हाउस चौक
जगदलपुर
पिन-494001
मो.-9584003436