बस्तर पाति विशिष्ट सम्मान-2020-बंशीलाल विश्वकर्मा-जगदलपुर

बस्तर पाति विशिष्ट सम्मान कला और साहित्य के उन कर्मवीरों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने स्वयं को स्वयं की मेहनत से एक प्रकाश स्तम्भ की तरह बना लिया है । उनके किये कार्य और उनके दिखाए मार्ग का लेखा जोखा कला और साहित्य के पुजारियों के लिए एक वन्दनीय गाथा है ।

बस्तर विशिष्ट सफल सम्मान-2020-बंशीलाल विश्वकर्मा-जगदलपुर

साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर द्वारा उन कलाकारों और साहित्यकारों को बस्तर पाति विशिष्ट सम्मान प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन में एक ऐसा स्थान बना लिया है जो दूसरों के लिये एक मिसाल है। आदरणीय बी एल विश्वकर्मा जी को चित्रकला के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिये वर्ष 2020 का बस्तर पाति विशिष्ट सम्मान प्रदान करते हुये साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

बस्तर और कला एक दूसरे के पर्याय तब बन जाते हैं जब बंशीलाल विश्वकर्मा जी का नाम लिया जाता है। जिनको सभी छोटे बड़े लोग प्यार से दादा कहते हैं। दादा ने अपने जीवन में कितने लोगों को चित्रकला मूर्तिकला का ज्ञान दिया है शायद उनको भी याद न होगा। आज भी अनवरत उनका शिक्षा दीक्षा का कार्य चल ही रहा है। जगदलपुर और पूरे बस्तर क्षेत्र में जो भी आज रंग और ब्रश थामा हुआ नजर आये वह निश्चित रूप से दादा का सिखाया हुआ बंदा है। दादा ने वाटर कलर, फेब्रिक कलर में अपनी कला को संवारा है तो इसके साथ ही फोटो पेंटिंग में भी सिद्धहस्त हैं। कला को समर्पित दादा अपने घर में हर वर्ष मिट्टी से गणेश की मूर्ती स्वयं बनाकर ही उसकी स्थापना करते हैं।
दादा के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना, और जीवन भर जुड़ी रही है और वह है दादा का लाला जगदलपुरी जी के साथ आत्मीय और दोस्ताना संबंध। लाला जी ने दादा की आकृति संस्था में साहित्य के लिये अपने जीवन का बहुत सा समय बिताया। दादा और लालाजी कला और साहित्य से जुड़े होने के बाद भी आपस में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत किया। साहित्य की लौ लगातार जलाये रखने में दादा का बड़ा हाथ रहा है। क्योंकि दादा एक साहित्यकार न होते हुये भी साहित्यिक गोष्ठियां लगातार आयोजित करते रहे हैं। पहले अपने घर में भी रात रात भर गोष्ठियां आयोजित करते रहे, बाद में कला एंव साहित्यिक संस्था आकृति में भी में ये कार्यक्रम होता रहा।
दादा के जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है बस्तर के वीर नायक गुण्डाधूर की तस्वीर बनाना। दादा ने धुरवा जाति के मूल स्थान नानगुर जाकर कई बुजुर्गो से स्वयं ही बातचीत की, उनकी लोककथाओं को सुना समझा और इसके सहारे गुण्डाधूर की आकृति बनाई। इसके लिये तात्कालीन मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी जी ने दादा की सराहना भी की थी। वैसे तो दादा के लिये उनने जीवन में सम्मानों की कोई कमी न थी और दादा सम्मान के पीछे भागते भी नहीं हैं।
दादा श्री बंशीलाल विश्वकर्मा जी के कलाक्षेत्र में अवदान को दृष्टिगत रखते हुये साहित्य एवं कला समाज जगदलपुर उनको बस्तर पाति विशिष्ट सम्मान प्रदान कर रहा है।