वक्रदृष्टि-कीमत

*वक्रदृष्टि*

दिनांक-23 अगस्त 2022

(एक वक्र दृष्टिपात समाज के चरित्र पर )
लेखक- सनत सागर, संपादक बस्तर पाति त्रैमासिक

*कीमत*

’मेरा बेटा लंदन में है। वहीं सैटल हो गया है। तीन लाख रूपये उसकी मंथली सैलरी है।’ यह कहते हुये भानमल के चेहरे पर दुनिया भर का गर्व समा गया था। और ये सब सुनकर रमेश का चेहरा उतर गया था। उसके चेहरे पर छाई शर्म इस कदर भारी हो गयी थी मानों वह अगले ही पल भानमल के कदमों में गिर पड़ेगा।
’अभी पिछले महीने ही तो उसने लंदन की एंजल्स पॉश कालोनी में शानदार बंगला खरीदा है। मालूम है तुम्हें उस बंगले के चारो ओर इतने पेड़ लगे हैं, इतनी हरियाली है कि ऐसा लगता है कि हम किसी जंगल में आ गये हैं। हमारे यहां जैसी प्रदूषण वाली जिन्दगी नहीं जीना पड़ेगा उसे।’ भानमल दुगुने जोश से कह उठा मानों रमेश की शर्मीन्दगी उसके लिये उत्प्रेरक का काम कर रही हो।
’अच्छा!’ रमेश बातों ही बातों में कल्पना लोक में पहुंच चुका था।
’तुम सुनाओ। तुम्हारे बच्चे क्या कर रहे हैं ?’ भानमल ने वही प्रश्न कर दिया जिससे रमेश बचना चाह रहा था। वह विचार में पड़ गया कि वह कैसे बताये कि उसके बच्चे इसी देश में सड़ रहे हैं। वही………!
’छोड़ो ये बच्चों की बातें! कल शाम को मिलते हैं न होटल राज में। दो दो पैग के साथ और भी बातें हो जायेंगी।’ कहकर रमेश जल्दी से चला गया।
रास्ते भर वह तनावग्रस्त रहा। कैसे कल सामना करेगा वह अपने दोस्त का। मेरे बच्चे भी कुछ अच्छा पढ़ लिख लेते तो कुछ बन जाते। वही पुश्तैनी काम कर रहे हैं। माना कि गांव में शानदार मकान बना रखा है परन्तु शहर में तो वही तीन हजार फीट में बनी चार मंजिला बिल्डिंग ही है। चार बेटों के होते हुये भी कोई बात करने वाला नहीं है। हर रोज अलग अलग बेटे के घर खाना खाना एक अघोषित नियमावली सी बन गयी है। नाती पोते भी अपनी पढ़ाई लिखाई में लगे रहते हैं। मैं इस दुकान से उस दुकान भटकता रहता हूं।
सुबह सुबह उसकी नींद लगी थी और सुबह ही उठना जरूरी होता है। सारी रात वही अपनी समीक्षा दिमाग में चलती रही। माथा गर्म हो गया था। चाय पीकर फ्रेश हुआ और बड़े बेटे की दुकान पर चल पड़ा।
यूं शाम आ ही गयी जिसके आने का उसे जरा भी इंतजार न था। मरे हुये कदमों से वह चल पड़ा होटल राज की ओर।
वहां गेट के पास ही भानमल उसका इंतजार कर रहा था। उसके आते ही वह उसके गले लग कर स्वागत किया। और चल पड़े अपने उसी कमरे की ओर जहां वे बारह बरस पहले हमेशा बैठते थे।
’क्या मंगवाऊं ? पनीर चिल्ली या फिर ?’
’अरे वही अपना चना ही मंगवा मेरे भाई। उसके स्वाद के सामने हर स्वाद फीका है। रमेश ने कहा। तो भानमल अपनी जेब से एक पॉलीथिन निकाला जिसमें फुटे हुये चने दिखाई पड़ रहे थे।
यहां वहां की बातों में दो-दो पैग हो चुके थे। इतना काफी था उनके भीतर का बाहर आने के लिये। अचानक भानमल रमेश का हाथ पकड़कर रो पड़ा।
’ऐसी जिन्दगी जीकर क्या मतलब! धनवान बेटों का बाप हूं। एक लंदन में तो दूसरा न्यूजीलैण्ड में। अकेला दीवारों से बातें करता जी रहा हूं। बातें करने के तरस जाता हूं। अपने दिल का हाल बताने के लिये सिर्फ घर की टेबलें और कुर्सियां हैं। उनके फोन आयें या न आयें गनीमत है उनके भेजे पैसे आते रहते हैं जिनकी मुझे जरूरत भी नहीं है। मैं उन पैसों को ही अपने उनके बीच का संवाद समझ लेता हूं। नाती पोते तो मेरी बात ही नहीं समझते हैं। सिर्फ अपनी हथेली को अपने होंठों से छुआ कर उनकी ओर उछाल देता हूं।
मैं अपने अकेलेपन से रोज मरता हूं। कई बार तो बीमारी में कई कई दिनों तक बिस्कुट और पानी से ही काम चलाता हूं।
मैं तुमको सही बात बताऊं! मैं लोगों को अपने बेटों की बातें बता बता कर खोखली हंसी ही हंसता हूं। जब ऐसा ही दूर दूर रहने वाला जीवन जीना था तो फिर विवाह और परिवार का मतलब ही क्या है ? लोग कहते हैं वीडियो कॉल से तो लाइव बात हो जाती है……!’
रूक गया भानमल और फिर अपनी दो पैग वाली कसम तोड़ता हुआ तीसरा पैग बगैर पानी के लील गया। रमेश के सोचने के पहले ही ये सब हो गया था। वह फिर भी उठा और उसके बाजू में बैठ कर उसकी पीठ सहलाने लगा। उसकी दिलासा का और खतरनाक असर हुआ। पह फफक कर रोने लगा।
’मैंने क्या सोच कर अपने बच्चों को पढ़ाया था। मेरे दोस्त मैं सच कहूं, मैं हमेशा चाहता हूं मेरी हमेशा इच्छा होती है कि मेरा कोई भी बेटा यहां मेरे पास आ जाये और मैं उसके साथ रहूं। भले ही वो दो वक्त खाना न दे परन्तु उसे देखकर ही मैं संतुष्ट हो जाऊंगा। पर यूं हर पल मरना बेहद मुश्किल है। बेहद दर्दनाक है…….!’
रमेश की आंखों में अंधेरा सा छा रहा था।
उर्दू शब्द छनन के पश्चात
चेहरा-मुंख
दुनिया-संसार
इस कदर- इस तरह
कदम-पग
शानदार-सुंदर
मालूम होना-पता होना
जिन्दगी-जीवन
शर्म-लाज
शाम-संध्या
पुश्तैनी-वंशागत
मकान-घर
रोज-हर दिन
दुकान-पण्यशाला
जरूरी-आवश्यक
इंतजार-प्रतीक्षा
फीका-नीरस
काफी-बहुत
मतलब-अर्थ
बाप-पिता
अकेला-एकाकी
दीवार-भीत
दिल-हृदय
हाल बताना-स्थिति बताना
गनीमत-कम से कम
बीमारी-रूग्णता
सही-सत्य
बात-तथ्य
कसम-वचन
बगैर-बिना
बाजू-निकट
दिलासा-ढांढस
खतरनाक-भयावह
वक्त-समय
बेहद-असीम
मुश्किल-कठिन
दर्दनाक-कष्टदायक