वक्रदृष्टि-कीमत

*वक्रदृष्टि*

दिनांक-24 अगस्त 2022

(एक वक्र दृष्टिपात समाज के चरित्र पर )

लेखक- सनत सागर, संपादक बस्तर पाति त्रैमासिक

*कीमत*

’ये बच्चे नहीं जी का काल हैं। दिनरात सिर्फ और सिर्फ परेशान करते हैं। जरा भी चैन से नहीं रहने देते। दिन भर इनके लिये खटते रहो, पसीना बहाते रहो और घर में घुसते ही जरा भी आराम से रहने नहीं देंगे।’ सागर छोटू को थपड़ाने के लिये हाथ दौड़ाया था परन्तु छोटू की चपलता थी कि वह झट से बैठ गया और सागर का वार हवा में ही घूम कर रह गया। वह और ज्यादा खिसिया गया। वह भी उसे पकड़ने के लिये दौड़ा पर क्या बच्चों को पकड़ पाना मां बाप के ताकत में आता है क्या!
इस पकड़ा पकड़ी और मारा मारी में सागर भूल गया कि उसका दोस्त राजेश भी उसके साथ आया था। सागर की पत्नी मधु, राजेश को नमस्ते करने के बाद सोफे पर बैठने को बोली। राजेश सोफे पर बैठ गया।
’भैया! सच में ये बच्चे जरा भी नहीं समझते कि कोई थकाहारा घर में आया है तो उसे चैन से बैठने दें। ये रोज की नौटंकी होती है। ये सुबह से घर से निकलते हैं और शाम को घर में आते हैं। इनके आते ही बच्चे इनके सर पर चढ़ जाते हैं।’ मधु भी अपने पति का पक्ष लेती हुई बोली।
’बच्चे हैं बच्चे! भाभी, ये उधम मस्ती नहीं करेंगे तो क्या मैं और आप करेंगे! उनके खेलने कूदने से ही ये घर एक घर होता है। देखो कितनी रौनक लग रही है इन बच्चों से।’ राजेश समझाता हुआ बोला। उसके चेहरे पर असीम आनंद की छवि देखी जा सकती थी। मधु कुछ बोलती कि सागर आ गया तब तक। शायद उसने उस छोटू के नट बोल्ट कस दिये थे। उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव दिख रहे थे।
’बगैर मार के अगर बच्चे समझ गये बड़ों की बात तो ये बच्चे काहे के बच्चे! अब चार दिन तक शांत रहेंगे।’ अपनी शर्ट की बाहों को वापस सीधी करते हुये वह बोला।
रमेश उसकी बात सुनकर कसमसा सा गया। उसका मुख गुस्से से लाल हो गया।
सागर उसकी जांघ में हाथ रखकर बोला।
’नहीं भाई राजेश! इन बच्चों को ऐसे ही सीधा किया जाता है।’
’तुम इंसान हो या कसाई! इन फूल से बच्चों को इस कदर मार कर अपनी ताकत का प्रदर्शन मान रहे हो। बेवकूफ हो तुम! ये फूल हैं बगिया के। इनको पालने के लिये निर्मम नहीं बल्कि नर्म बनना होता है। मैं जाकर उन बेचारों को दुलारूंगा। बेचारे बच्चे!’ यूं कहकर राजेश उठ खड़ा हुआ। सागर उसे अचरज से देख रहा था। उसे राजेश का उसके मामले में हस्तक्षेप करना खराब लगा। उसके मुंह से निकल गया।
’रहने दे भाई! तू नहीं समझेगा इन बच्चों के रंग ढंग! जिसके होते हैं वही समझ सकता है…..!’
ये क्या…..राजेश एकदम से निढाल होकर सोफे पर गिर गया। उसका चेहरा उतर गया। नजरें जमीन पर जा गड़ीं।
सागर एकदम से सकपका गया। उसके मुंह से निकले शब्दों का आंकलन वह कर रहा था और उसे याद आ रही थी राजेश की बातें। कुछ माह पहले जो उसने रोते हुये उसके साथ शेयर की थीं।
’सागर! भले ही मेरे सतरह बरस के बेटे को भगवान लूला लंगड़ा रखता पर उसे उस दुर्घटना के बाद कम से कम जिन्दा तो रखता। अब तो मेरा बेटा हमेशा के लिये जुदा हो गया। कैसे जीऊंगा अब मैं उसके बिना!’

*उर्दू शब्दों की सूची छनन प्रक्रिया के बाद-*

सिर्फ-केवल
परेशान-विकल
चैन-प्रसन्नता
आराम-प्रसन्नता
ताकत-शक्ति
रोज-प्रतिदिन
सुबह-प्रातः
शाम-संध्या
रौनक-शोभा
अचरज-आश्चर्य
चेहरा-मुख
बगैर-बिना
फूल-पुष्प
बेवकूफ-मूर्ख
बेचारा-दीन
बल्कि-वरन्
मामले-घटना
नजर-नैन
जमीन-धरती
हमेशा-सदा
जुदा-पृथक