समीक्षा-मन्नू भंडारी जायेगा मंगल पर

मन्नू भंडारी जायेगा मंगल पर

व्यंग्य और हास्य के बीच एवं बारीक रेखा होती है जो सामान्यतः नहीं देख पाते हैं और इस कारण ही इन दोनों शब्दों को पर्यायवाची समझ लिया जाता है। वस्तुतः यह भिन्न अर्थ के शब्द हैं। यह सत्य ‘मन्नू भंडारी जायेगा मंगल पर’ के लेखक ने अच्छी तरह समझ ली है और राजनीति के भीतर की मैली, गंदली दुनिया दिखा दी है। देश की राजनीतिक व्यवस्था की पोल खोलता यह व्यंग्य उपन्यास अपनी विशिष्ट शैली और गहरी मार के कारण पठनीय है।
मन्नू भण्डारी जो कि कुछ नहीं था। जो कुछ न बन सका वह राजनीति में चमक गया, स्पष्ट संदेश देता है कि भारत का राजनीतिक परिदृश्य किस कदर विद्रूप है।
जहां कुछ ज्यादा मेहनत करने वाला कहां तक पहुंच जाता है इसके लिए शिक्षा किसी भी प्रकार से जरूरी नहीं है। बीएससी थर्ड डिविजन मन्नू, सरपंच बनकर राजनीति की जिस प्रकार सीढ़ियां चढ़ता जाता है एक सपने की तरह लगता है। पर है तो सच! राजनीति के वृक्ष में लटकने वाले, चिपकने वाले, रेंगने वाले, लिपटने वाले सभी का उद्धार हो ही जाता है। चपरासी देवनाथ और उसकी पत्नी राजेश्वरी कहां से कहां पहुंच जाते हैं वह भी मात्र राजनीति के वृक्ष मे चिपक जाने से। कामवाली श्यामली बर्तन झाडू करते हुए मंत्री जी की खास बन जाती है।
इस व्यंग्य उपन्यास में एक और राजनीतिक सच्चाई उजागर होती है और वह है राजनीति में महिलाओं की स्थिति! महिलाओं को अपनी दुकान चलाने का औजार बनाया जाता है उनके रूप-सौन्दर्य का उपयोग अपनी जरूरतों की पूर्ति और अपनी सीढ़ी बनाने के लिए होता है। उन्हें एक तरह से इन्नोसेन्ट मानकर चला जाता है पर वे उनकी गुरू निकलती हैं। वैसे भी आज की राजनीति, अपनी अपेक्षाओं की पूर्ति और समाज के धन को निचोड़ने का जरीया होती हैं। इसलिए उन महिलाओं का वैसा बन जाना जरा भी अटपटा महसूस नहीं होता है बल्कि वर्तमान परिदृश्य में महिलाओं की आजादी के मायनों की पूर्णाहुति महसूस होती है। वहां के विधायक का अश्लील चरित्र होना राजनीति की चरित्रहीनता का ही विवरण है। इस राजनीति में आने वालों के लिए ही ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड गिफ्ट, भुने काजू, मुर्गा, दारू उपयोग में आते हैं, तो सोफे, सजे ऑफिस बोलेरो जैसी गाड़ी, ड्राइवर, आफिस अटेण्डेंट, एसी आदि के बिना उनका जीवन संभव नहीं है। इस राजनीति में जनता जनार्दन के दर्शन तो पल भर भी नहीं होते हैं यहां तो मात्र जुगाड़, सीढ़ी, ऐश और पेटी भरने का ही कर्म लगातार चलता है। हर कोई दूसरों में अपने लिए सीढ़ी की गुंजाइश खोजता है और गुंजाइश मिलते ही लग जाता हैं अपने आपको घुन साबित करने में। राजनीतिज्ञ का चपरासी भी कितना पावरफुल होता है यह देखा जा सकता है। अगर वह देवनाथ की तरह महत्वाकांक्षी न भी हो तो नोट पीटता है और खुद को शराब में डुबाकर अपनी पत्नी को आगे बढ़ाकर सहयोग करता है।
राजनीति में जुगाड़ के लिए एक दूसरे के नीचे की जमीन खींचना तो होता ही रहता है पर उनके साथ ही पैसे बनाने का धंधा भी चलता रहता है। बीएससी थर्ड डिविजन मन्नू का विज्ञान एवं तकनीक प्रचार-प्रसार निगम का अध्यक्ष बनकर राज्यमंत्री का दर्जा पा जाना, वहां के विधायक को गड़ते हुए भी कमाई का जरीया बना लेना उचित लगता है। कबाड़ सप्लाई करके कमाई करना दोनों को ‘मजबूरी का दोस्त’ बने रहने पर मजबूर करता है। साथ हजम किये पैसे फेविकोल की तरह जोड़कर रखते हैं। पंचायती राज व्यवस्था का सटीक चित्रण बताता है कि जमीनी हकीकत क्या है! सरपंच है मन्नू जो अपनी राजनीति चमकाने के चक्कर में अपने गांव में नहीं रहता है। सरपंची का काम संभालती है उसकी पत्नी सुशीला जो कि सरकारी नौकरी में भी है। सरकार ने प्रशासन का विकेन्द्रीकरण नहीं किया है बल्कि ‘भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण कर दिया है अब कोई अकेला हजम नहीं करता है बल्कि बोटियों की बरसात होती है। ये बोटियां सरपंच, पंच, इनके ठेकेदार साथियों का मुंह बंद रखती है और सत्तारूढ दल का समर्थन करते रहने को प्रेरित करती है। भ्रष्टाचार की यह मलाई किस कदर छलक रही है मन्नू के उदाहरण से स्पष्ट है वह स्कूल का अतिरिक्त कक्ष अपनी बाड़ी में बनवा लेता है और उसके आधे हिस्से का खुद उपयोग करता है।
मन्नू भण्डारी के साथ चलने वाली मंगल ग्रह जाने की कहानी भी राजनीति में भ्रस्टाचार के चरम की कहानी है। यह कहानी विश्व स्तर चलने वाली राजनितिक संबंधों के भीतर की कालिमा को दर्शाती है। कैसे देशों के बीच संबंधों में दिखता कुछ है और होता कुछ है। दो करोड़ डॉलर प्रधानमंत्री को देकर मंगल अभियान के लिए तैयार किया जाता है। प्रधानमंत्री किस तरह पक्ष-विपक्ष को मैनेज करते हैं- इसका बड़ा सजीव चित्रण है।
मीडिया इस उपन्यास में अपने कपड़े उतारकर खड़ा है। वह अपने हित के लिए समाचार परोसता है मन्नू भंडारी की बारूद बांधकर राकेट की सवारी जो कि परले दरजे की नादानी और बेवकूफी थी, उसे मीडिया वैज्ञानिक खोज, साहस भरा कदम और हीरोगिरी के रूप में प्रेषित करता है। मीडिया का यह चरित्र वर्तमान समय का वास्तविक चित्रण है। तिल का ताड़ बनाना और राई का पहाड़ बनाना मीडिया मैनेजमेंट से संभव है। अब तो मीडिया का नाम बदल गया है और हो गया है पेड मीडिया!
मंगल ग्रह में जमीन बेचने और कालोनी बनाने की योजना का प्रतीक लेकर शरद जी ने राजनीति, मीडिया और ठेकेदारों के गठजोड़ पर करारी चोट की है। इन तीनों की मिलीभगत से सपने बेचे जाते हैं वो भी मनचाही कीमत पर, ये बात भारतीय परिदृश्य में हर कोई समझने लगा है। उसके बाद भी इस जाल में फंसता ही है।
‘मन्नू भंडारी जायेगा मंगल पर’ व्यंग्य उपन्यास के भाषा पक्ष पर ध्यान देने पर पाते हैं कि सरल, सहज आत्सात कर लेने वाली भाषा का उपयोग शरद जी ने किया है। और यह बात आज के दौर में नितांत आवश्यक महसूस हो रही है। हमारे देश में तेजी से हिन्दी बोली में परिवर्तित होती जा रही है। यदि रचनाकार क्लिष्ट भाषा उपयोग करता है तो वह संप्रेषणियता से बाहर हो जाती है। इंटरनेट और मोबाइल के जमाने में सीमित शब्द ही बोले समझे जा रहे है। इस उपन्यास की यह खूबी ही देश के साहित्यिकारों के बीच इसे खुश्बू की तरह फैलायेगी। यह बात कई ‘साहित्यविदों’ को कमी की तरह महसूस हो सकती है।
इस प्रकार लेखक में अपनी प्रतिभा सटीक उपयोग कर ऐसी जबरदस्त व्यंग्य रचना का सृजन किया है, व्यंग्य विधा में उपन्यास लिख पाना स्वयं में एक उपलब्धि है।
पुस्तक का नाम-मन्नू भंडारी जायेगा मंगल पर,

लेखक का नाम-श्री शरदचंद्र गौड़, प्रकाशक का नाम-यश पब्लिकेशन,

लेखक

समीक्षक-सनत कुमार जैन