करमजीत कौर का काव्य

इन्तज़ार है तेरा

आज भी दरवाज़े पर निगाहें टिकाए बैठी हूं
इस इन्तज़ार में कि कभी तो आएगा वो
धीमे से मुस्कुराता हुआ
मदमस्त चाल चलता हुआ
फिर से आएगा करीब मेरे
और ले लेगा मुझे आगोश में
उसका स्पर्श कर देगा मुझे रोमांचित
उसके प्यार के मीठे शब्द
घोल देंगे कानों में मिश्री सी
उसकी ऑंखों से छलकेगी मय
जो कर देगी मदहोश मुझे
नयनों से होंगे गिले शिकवे
मौन अधर साक्षी होंगे उस तड़प के
ऑंखों से बरसेगा सावन
कर देगा शीतल हमारा मन
उसका आलिंगन देगा वह सुकून
जो दुनिया की किसी शह में नहीं
ऑंखें बंद कर भूल जाऊंगी
मैं सारे संसार को
प्रेम की वर्षा से भीगेगा तन-मन
आज भी इन्तज़ार है कि
कभी तो आएगा वो ।

ग़ज़ल

अपने दर्द को हम इस कदर छुपाते चले गए
भीगी ऑंखों से भी हम मुस्कुराते चले गए ।
उनसे इक बार मिलने को, तड़पते रहे हर पल
लेकिन जब वो मिले, नज़रें चुराकर चले गए ।
इष्क करने की सजा मिलेगी ये तो तय था
न जाने क्यों फिर भी हम दिल जलाते चले गए ।
उनकी नषीली ऑंखों से छलकती रही षराब
हम पीते चले गए वो पिलाते चले गए ।
जिनके वादों पे यकीन कर हमने छोड़ा जहां सारा
मझधार में हमको छोड़ वो इतराते चले गए ।
उनके इष्क के फरेब में हम फंसे इस कदर
वो वादे करते गए और हम निभाते चले गए ।
तन्हाई और दर्द की ‘जीत’ को मिली सौगात
हम तड़पते रहे और वो जष्न मनाते चले गए ।

करमजीत कौर
संपादक ‘महिला मीडिया’
रेलवे कॉलोनी,
जगदलपुर जिला-बस्तर, छ.ग. पिन-494001