लघुकथा-सफलता-अलोक कुमार सातपुते

सफलता

वह मेरा पड़ोसी, सहपाठी और सजातीय था। मैं न जाने क्यों उससे प्रतिद्वंदिता रखता था। जब वह पहली बार सफल हुआ तो उसे पांच बर्तनों का सेट पुरस्कार-स्वरूप मिला। मैंने उसकी उपेक्षा की। दूसरी बार जब वह सफल हुआ तो, मैंने उसका उपहास उड़ाया। उसकी तीसरी सफलता के दौरान मैंने उसके चरित्र पर कीचड़ उछालते हुए उसे खूब बुरा-भला कहा और उसे बुरी तरह लताड़ा।
आज वह सफलताके उच्चतम शिखर पर है, और मैं उसे पूजता हूं।

आलोक कुमार सातपुते
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