अर्ध रात्रि का ज्ञान-लेखक का प्रगतिशील हो जाना

अर्ध रात्रि का ज्ञान
पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 8.00 पी.एम. से 10.30 पी.एम. दिनांक-10 जून 2022

लेखक का प्रगतिशील हो जाना
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.

’तुम्हारा लेखन तो समय के अनुकूल नहीं है। यहां देखो गरीबों की हालत, बेचारे किस मुश्किलात में जी रहे हैं। दो जून के निवाले का ठिकाना नहीं है। और तुम्हारी कलम से फूलों का सौन्दर्य टपक रहा है। कितने बेदर्द हो यार तुम!’ योगेश लगभग दुत्कारता हुआ सागर की रचनाओं को पढ़कर बोला, साथ ही उसका चेहरा एकदम से अजीब तरह से टेढ़ा मेढ़ा हो गया। मानों उसका पैर गलती से किसी इंसानी विष्ठा पर पड़ गया हो। परन्तु सागर के चेहरे का भाव परिवर्तन नहीं हुआ। उसके हाव भाव से उस टकले प्रगतिशील लेखक की स्वभाविक प्रतिक्रिया लग रही थी। उसके लिये ये सब अप्रत्याशित नहीं था।
वह प्रत्युत्तर में बोला -’तो क्या लिखें हम ? आपके अनुसार गरीबों का दर्द, दलितों की पीड़ा और क्या -क्या लिखा जा सकता है ?’
’ढेरों विषय हैं। सच्चाई लिखो। गरीबों का शोषण लिखो। उनके उत्थान के लिये लिखो। वर्तमान व्यवस्था की लूटखोरी पर लिखो। बांध के दुष्परिणाम पर लिखो। रेल लाइन के आगमन से संस्कृति नाश एवं पतन के संबंध पर लिखो। बिजली घरों से होते प्रदूषण पर लिखो। बुलेट ट्रेन के औचित्य पर लिखो। उद्योगों के लिये किसानों की ली जाने वाली जमीन के विरोध पर लिखो। बड़ी कंपनियों द्वारा किसानों की जमीन किराये पर लिये जाने के विरोध में लिखो। अनगिनत विषय हैं लिखने को उन पर लिखो। ये क्या जब भी लिखे तो फूल पौधों और प्यार मोहब्बत पर लिख लिख कर अपनी मेहनत जाया करते हो।’ योगेश ने सागर के कंधे पर हाथ रखकर कहा।
’वर्तमान पर ?’
’हां, वर्तमान की विसंगतियों पर ही लिखना है। अगर हम अपने लेखन में वर्तमान को नहीं दिखायेंगे तो कौन दिखायेगा ? आज के वर्तमान का भविष्य के इतिहास में कौन आंकलन कर पायेगा ?’
’तो क्या वर्तमान में सिर्फ गरीबों और दलितों का ही शोषण हो रहा है ? या फिर बांध से ही प्रकृति का क्षरण हो रहा है ? या रेल, बुलेट ट्रेन किसी भी देश के विकास की बुनियाद नहीं हैं ?’ सागर ने अपनी बात रखी। तो योगेश एकदम से हंस पड़ा और बोला -’तुम बच्चे हो अभी। पहले पढ़ो रोमला थापर को, इरफान हबीब को। तब पता चलेगा कि ये देश किन परिस्थितियों से गुजरा है कितना शोषण किया है कुछ मनुष्यों ने कुछ मनुष्यों का। बल्कि यूं कहो कि कुछ इंसानों ने कुछ इंसानों को इंसान ही नहीं समझा। क्या उसके बाद भी हमें इन गरीबों का ध्यान नहीं रखना चाहिये।’
’विशेष ध्यान!’ सागर योगेश की बात सुधारता हुआ बोला।
’हां!’ योगेश बोला।
’सर अभी कुछ आतंकवादी फरार थे तब उनके मां बाप को पकड़कर पुलिस वालों ने उन आतंकवादियों को पकड़ने में सफलता प्राप्त की।’
अचानक विषय परिवर्तन होते ही योगेश चौंक गया।
’राजनीति में इंट्रेस्ट है तो राजनीति ज्वाइन कर लो। ये साहित्य में राजनीति को घुसाने का क्या मतलब है ? अजीब बेवकूफियां करते हो तुम तो। किसी बेटे के गुनाह के लिये मां बाप को पकड़ना गलत है और राजनीति प्रेरित है।’ योगेश एकदम से बिफर गया।
’सर, एक मिनट सर! आपके दिमाग की सीडी उलटी फिट है लगता है। या फिर आप एक नंबर के धूर्त हैं। अपनी बातों से कितनी दोगलाई परोसते हैं देखिए। आतंकवादियों की गलतियों के प्रत्यक्ष प्रमाण के बावजूद आप उनके मां बाप को पकड़ कर उनके माध्यम से आतंकवादियों को घेरने को गलत मानते हैं। और जिस सदियों पुराने शोषण को आप बार बार रेखांकित करते हैं उसके मात्र दो या तीन ही प्रत्यक्ष गवाह इरफान और रोमिला ही हैं जो जाने कौन से विज्ञान के माध्यम से काल के पिछले कालखंड में चले जाते हैं और वे वहां उस काल के दलितों के नरक से भी भयंकर दुखों को, हिंसा को देखकर भारत का इतिहास लिखते हैं। जिसकी बिना पर आप जैसे प्रगतिशील लेखक संघ के नकली लेखक उन तथाकथित शोषण करने वालों की औलादों को अनंतकाल तक दंडित करने का विधान लिखते हैं। दूसरी ओर उस शोषण काल के तुर्क मुगल आक्रमणकारियों लुटेरों बलात्कारियों के जुल्मों के चिन्हों टूटेफूटे भग्न मंदिरों को यथास्थिति में रहने की पैरवी करते हैं। अपने बच्चों को इंजीनियर बनाकर एनएमडीसी में, बिजलीघरों में नौकरी करवाते हैं और खदानों, बिजलीघरों का विरोध करते हैं। जिन बिजलीघरों का विरोध करते हो उनकी बिजली से अपने घरों में एसी का उपयोग करके विद्युत और प्राकृतिक संसाधनों की बरबादी करते हो। अगर सिर्फ बिजली के प्रकाश का ही उपयोग करते तो समझ आता। आज बुलेट ट्रेन का विरोध कर रहे हो पहले इस ट्रेन का ही विरोध करते थे। आज भी आपके भाई बंधु सड़क का विरोध करते हैं।
और जिस प्यार मोहब्बत के विरोधी तुम हो उसकी वजह से ही तुम इस दुनिया में हो वरना परिवार बनता ही नहीं। औैर जाने किस दुनिया में पड़े रह जाते…….और हां, पहले तुम परिग्रह के बिना रह कर बताओ एक मिसाल बनों तब आना विकास के विरोध में। दिन रात सड़कों पर थूक कर बोलते हो अमेरिका और पोलेण्ड जैसी सफाई भारत में कहीं नजर नहीं आती। या चाइना की प्रगति क्या गजब की है। अरे, नमूनों तुम्हारे जैसी दोहरी बुद्धि के कारण ही भारत आज चाइना से लेकर हर देश के पीछे खड़ा है…….इतना ही काफी है या फिर कपड़े उतारे जायें तुम्हारे सड़कों पर ?’