काव्य-रमेश जैन राही

पहुँच

एक अधिकारी के
रवैये से जब
नागरिक त्रस्त रहने लगे
तो उनकी शिकायत
उच्च स्तर पर करने लगे
परन्तु अफ़सोस
इस पर भी उनकी
कुर्सी नहीं हिली
तो लोगों को यह बात
बहुत खली
एक पत्रकार ने आखिर
पूछ ही लिया-
“इतनी शिकायतों के
बाद भी आप जमे हैं
राज़ क्या है?
सर! आपका अंदाज़ क्या है?“
वे मुस्कुराते हुए बोले-
“मित्र! मुझे हटाने के
सारे तरीके व्यर्थ जायेंगे
आपकी कलम और
आपके अख़बार भी
मेरी कुर्सी नहीं हिला पायेंगे
क्योंकि मैंने अब तक
जो “पहुँच“ बनाई है
वे कब काम आएंगे?“
तो इस तरह
“पद“ और “पहुँच“ की
धौंस बताकर
अफ़सर लोगों को डराएंगे
धमकाएँगे
अपने कर्तव्यों से दूर भागेंगे
तो कैसे मेरे देश के भाग्य जागेंगे।

लक्ष्य

वह राही
लक्ष्य को
अपनी मुट्ठी में लिए
अनवरत चलता रहा
कंटकाकीर्ण पथ पर
भी नहीं डिगा
और पहुँच ही गया
अपनी मंज़िल तक।

वह राही
शायद जानता था
की ज़िंदगी में यदि
लक्ष्य बनाकर चला जाये
तो कुछ भी मुश्किल नहीं है
चाहे सागर की
गहराई नापना हो
या सारे जहाँ को
बाँहों में समेटना हो।

रमेश जैन ’राही’
’चंदेरिया पैलेस“
डोंगरगांव (छ. ग.)
मो.-9893863519