लघुकथा-अमृता जोशी

ईमानदारी का ईनाम

बुधवा ने बहुत ज्यादा गरीबी से अपने बेटे अमर को पढ़ाया-लिखाया और अपने सपने को सच करवाया। उसका बेटा पढ़-लिखकर बहुत ही ईमानदार अफसर बन गया। यही तो सपना था बुधवा का, कि उसका बेटा एक नेक और ईमानदार अफसर बने।
उधर ऑफिस में आज फिर अमर से कहा गया -’’मिस्टर अमर! ये रहा आपका ट्रांसफर आर्डर!’’ अमर मुस्कुराकर आर्डर ले लिया। उसके साथ हर छः महीने में यही तो होता है। अब तो उसे अपनी ईमानदारी का ईनाम लेने की आदत सी पड़ गयी है।

मोल-भाव

’’बस-बस यहीं रोक दे।’’ शीला ने रिक्शेवाले से कहा। रिक्शे से उतर कर बीस रूपया पकड़ाते हुए बोली ’’ये ले!’’
रिक्शावाला बोला-’’ये क्या मैडम बस बीस रूपया ? चालीस रूपया होता है।’’
’’क्या ? चालीस रूपया! हवाई जहाज से लाया है क्या ?’’ शीला एकदम से चिल्लाकर बोली।
’’मैडम! हम हवाई जहाज चलाते तो ये रिक्शा नहीं खींचते। इतनी दूर से ले कर आ रहा हूं मैडम, और फिर देखो कितनी तेज धूप भी है।’’ रिक्शावाला का चेहरा दयनीय हो गया। शीला दस का नोट निकाल कर उसके हाथ में रखकर, तेजी से साड़ी के शो-रूम में चली गयी।
शो-रूम में शीला साड़ियां देखने लगी। साड़िया सुंदर थी पर कीमत बहुत ज्यादा थी। कीमत सुन-सुनकर शीला का दम निकला जा रहा था। उसने साहस बटोर कर कहा -’’कुछ कम कीजिए न! कीमत तो बहुत ज्यादा है।’’
शो-रूम का मालिक बोला -’’देखिए मैडम! हम क्वालिटी के हिसाब से ही रेट बता रहे हैं, यहां मोल-भाव नहीं चलता है। वो देखिए बोर्ड में लिखा है ’एक रेट, मोल भाव नहीं।’ आपको लेना है तो लीजिए वरना आप की मर्जी। आपको सोचना वाहिए न, इतनी बड़े शो-रूम में कीमती साड़ियां ही होगी न!’’
शीला टका सा जवाब सुन साड़ी बगैर खरीदे ही बाहर आ गयी।

कामचोरी

आज ऑफिस जाने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था। पता नहीं क्यों ऑफिस के ढेर सारे काम ने कामचोरी करने पर विवश कर दिया था मुझे। मन बार-बार यही सोच रहा था कि रोज वही ढेर सारी फाइलें, हिसाब-किताब, लिखा-पढ़ी…उफ्फ। मैंने मन बना ही लिया कि आज छुट्टी ले ही लूंगी।
तभी डोरबेल बजी। और कामवाली सविता हांफती हुई अंदर आयी। मैंने पूछा -’’क्या हुआ ?’’
वह कहने लगी -’’क्या बताऊं दीदी! आज तो बहुत काम हो गया। घर पर मेहमान आये हैं तो काम ज्यादा। फिर पानी के लिए नल पर झगड़ा। हड़बड़ी में आ रही थी तो एक स्कूटी वाला हल्के से ठोकर मार दिया। और भाग गया। काम पर आना जरूरी होता है दीदी, आखिर मेहनत के चार पैसे कमाते हैं बेईमानी करेंगे तो कैसे चलेगा। है ना दीदी!’’
उसकी बातों से मैं चौंक गयी। ऐ गरीब औरत चार पैसों के लिए ईमानदारी से काम करना चाहती है और मैं तो उससे कई गुना ज्यादा पैसे तनखा में लेती हूं।

अमृता जोशी
15-स्टेट बैंक कालोनी, धरमपुरा, जगदलपुर
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