काव्य-कोई परचम-रोज़लीन

कोई परचम

…..प्रेम करते हो!
आकाश की हथेलियों में उछलते
रंगों के भुरभराते गुब्बारे
बरबस फूट पड़ेंगे
तुम्हारे चेहरे को छू कर;
टिमटिमाती आंखें अपलक निहारेंगी
निःशब्द शून्य में
उजास रश्मियां मस्तक पर आरूढ़
अट्ठखेलियां करेंगी
सतहों को फाड़कर निकला पलछिन्न
किसी सरगम के छल्ले छोड़ देगा
तुम्हारे चारो ओर
-अंधेरों की मोटी लीक ढह जायेगी
कोई परचम फहरायेगा गुनगुनाती हवा में,
शीशे के पारदर्शी महल से
कोई अजनबी
जानी-पहचानी आवाजों सहित
बांह फैलाये पुकारेगा तुम्हें
तुम खिंचे चले आओगे उस ओर
किसी सुषुप्ति में
शब्द नहीं उघड़ेंगे होंठों पर
…….बस मुस्कुराओगे तुम-
उस अवर्णनिय गंध के घेरे में

रोज़लीन
535, गली नंबर-7
कर्ण विहार, मरेठ रोड़ करनाल-132001
मो.-9467011918