लघुकथा-सनत कुमार जैन

बेटा बहू

’’रात भर बेचारी माँ तडपती रही। कितना भयंकर दर्द था। हे भगवान जल्दी ठीक कर दे मेरी माँ को!’’ देवेश ने सुलभा से कहा।
’’तुम भी तो रात भर नहीं सोये। पूरी रात माँ की सेवा में लगे रहे। माँ तो तीन बजे सो भी गई थी पर तुम नहीं सोये। जब माँ सोकर उठी तब ही तुम्हें बोल देती सोने को। उनके पीछे तुम्हारी तबियत न बिगड़ जाये?’’ सुलभा तीक्ष्णता पर आते हुए बोली।
’’माँ है वो माँ! यदि माँ ने मुझसे सोने नहीं कहा, इसका मतलब उनके दर्द की तीव्रता को समझो, कितना भयंकर दर्द रहा होगा, कैसे सहन किया मेरी माँ ने।’’ कहकर देवेश की आंख की कोरों से आंसू टपक पड़े।
ट्रेन में बैठी सुलभा सोच रही थी आज वो अपनी मां की मौत के बाद मायके जा रही थी।
’’अब जाने से तो मिटटी भी नहीं मिलेगी, चलना है तो बोलो?’’ देवेश ने कहा। सुलभा कुछ बोलती की माँ बोल उठी,- ’’सीधे तेरहवीं में ही जाना। तेरह दिन कहाँ और कैसे रहोगी?’’
’’वो मरने वाली मेरी माँ है। मिटटी में मिल भी जाएगी तो भी उसके शरीर की गंध बाकी होगी घर में, उसकी ममता मेरी राह देख रही होगी। मैं आज और अभी ही जाऊंगी।’’ और वह ट्रेन में बैठी थी।
सनत कुमार जैन