अंक-2-नक्कारखाने की तूती-भूमि का सही वितरण

भूमि का सही वितरण

सरकार को चाहिये कि वह एक ऐसी सीमा बनाये कि एक व्यक्ति को अच्छे ढंग से रहने के लिए कितनी जमीन की आवश्यकता होती है। मतलब किसी भी व्यक्ति के लिए 1000 स्केयर फीट जमीन पर्याप्त है आराम से जीने के लिए। इस जगह में चार व्यक्तियों का परिवार आराम से रह सकता है। अब जमीन का अधिकार विधेयक भी पास करे, एक व्यक्ति अपने रहने के लिए 1000 स्केयर फीट से ज्यादा की जमीन खरीद ही नहीं सके, ऐसा प्रावधान हो। धरती पर प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली समस्त चीजों पर सभी का समान अधिकार होता है फिर पीढ़ी दर पीढ़ी कोई भी इसका मालिक क्यों ? इसके बाद भी पूरी धरती खरीदने के जुगाड़ में हैं लोग। प्राकृतिक संसाधन के बंटवारे के लिए यही सोच होनी चाहिए कि सभी को बराबर मिले। जैसे सूरज का प्रकाश, बादल से पानी और बहती हवा बराबरी से मिलती है ऐसे ही जमीन सभी की है। भूगर्भ में दबे खनिज पर सभी का समान अधिकार है। खासकर उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों का तो है ही।
अगर सरकार ऐसा अभी नहीं कर पा रही है तो कम से कम ये करे कि ज्यादा जमीन खरीदने वाले को मानवता का दोषी माने और फिर उस पर दण्डात्मक कार्यवाही हो और वह भी आर्थिक दण्ड हो,। देखिये कैसे – 1000 स्केयर फीट से ज्यादा जगह का उपयोग करने वाले की संपतिकर की दर भूमि के बाजार में बिक्री भाव की दर का 10 प्रतिशत  टेक्स लगे।
1000 स्केयर फीट की जगह के लिए चाहे गांव हो या शहर, इस पदद्धि के लागू होते ही लोग जमीन खरीदकर भाव बढ़ाने वाला धंधा ही बंद कर देंगे। अभी होता यह है कि निर्माण पर संपतिकर लगता है खाली भूमि पर नहीं, इसलिए लोग दुनिया भर में जमीन खरीदकर दो नंबर का पैसा इनवेस्ट करते हैं। जमीन खरीदकर रखने वालों को सबक भी मिलेगा और जमीन खरीदने की प्रवृत्ति बंद होगी। जो खूब कमा रहा है वह राजस्व देगा। सरकार की कमाई बढ़ेगी। जमीन खरीदकर बेचना आदमी बेचने की तरह हैं। ऊपरी तौर पर छोटी बात महसूस होती है पर बारीक अध्ययन बताता है कि शहरों की सीमा बढ़ानें में इसी का हाथ है इसी जमीन खरीदी बिक्री के धंधे ने खेत डकार लिए, जंगल साफ कर दिये। हमारे आसपास ही नजर दौड़ाते ही पाते हैं कि लाखो स्केयर फीट जमीन जाने कबसे खाली पड़ी है और जमीन के भाव आसमान पर हैं क्यांकि जमीन का मालिक, जमीन को इनवेस्टमेंट के तौर पर रखा है। न तो इसके लिए उसे टेक्स देना पड़ रहा है न ही उसके मन में दुनिया का हक मारने का दर्द है। वह तो मजे में है निष्क्रिय। दिन दुनी रात चौगुनी रफ्तार से करोड़पति बनता हुआ।
यहां तक सोचने पर कई विद्वान बहुत से प्रश्न खड़े करेंगे। बानगी कि देखिए- (1) 1000 ेजि से क्या होता है? (2) जिसके पास पहले से ही ज्यादा जमीन है वो क्या करेगा ? (3) जमीन पर यदि दो तीन चार मंजिला मकान बना दिया तो कैसे टैक्स वसूलोगे? (4) खेती भी हजार स्केयर फीट में कराओगे! (5) जब पैसा कमाने के बाद उससे बड़े बनने का मौका ही नहीं मिलेगा तो लोग कमाने का क्यां सोचेंगे, वे तो आलसी हो जायेंगे। (6) पता कैसे लगाओगे कि किसके पास ज्यादा जमीन है ? देश इतना बड़ा है कि किसी भी कोने में जमीन ले सकता है आदमी।
जमीन 1000 स्केयर फीट ही पर्याप्त है एक परिवार के लिए, यह तो स्पष्ट है। इसके बाद रही बात पता लगाने कि तो पैन नंबर किस दिन काम आयेगा। जब सरकार एक-एक आदमी ढूंढकर वोटरकार्ड बना सकती है तो पैन नंबर नहीं बना सकती क्या ? भूमि रिकार्ड वालां का काम होगा कि हर खरीदी बिक्री पर पैन नंबर हो। भूमि रिकार्ड खाते में दर्ज होते ही पता लग जायेगा कि किसके पास कितनी जमीन है।
अपनी जगह पर पांच मंजिला बनाकर रहे आदमी उस पर थोड़ा मोड़ा संपतिकर लिया जाय। कुल दो पांच प्रतिशत लोगों की जीवनशैली के अनुरूप देश कानून हो या फिर 95 प्रतिशत  लोगों की सुविधा के लिए हो, ये विचार करना आवश्यक है। किसी प्राकृतिक संसाधन का उपयोग करना अलग बात है पर दुरूपयोग करना, ये तो दण्ड योग्य अपराध है.। इतना भी न करे सरकार तो कम से कम खाली भूमि पर उसके भाव का वर्तमान 10 प्रतिशत टैक्स वसूल कर ले वही काफी है।

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