लघुकथा-महेश राजा

वर्दी

वह चौराहे पर फल बेच रहा था।
एक व्यक्ति आकर उसे डांटने लगा, फिर मुफ्त मे फल मांगने लगा तो उसने मना कर दिया।
इस पर व्यक्ति बोला-मैं पुलिस वाला हूं, अभी वर्दी में नहीं हूं।
‘‘वो मैं नहीं जानता साब! हम तो पुलिस वाले को वर्दी और डण्डे से ही पहचानते हैं, पहनकर आओ फिर मना थोड़े ही है।’’

सेठजी का तर्क

सेठजी के द्वार से दो-तीन भिखारी बड़बड़ाते हुए निकले।
एक परिचित ने सेठजी से मजाक किया।
क्यों सेठजी! परलोक सुधारने के लिए इन लोगों को कुछ दिया नहीं ?’’
सेठजी बोले-‘‘परलोक सुधारने के लिए ही तो एक दिन सोमवार तय किया है। पर भाया! रोज-रोज इन्हें दूं तो मेरा ये लोक भी बिगड़ जायेगा। फिर तो मैं भी सड़क पर आ जाऊंगा।’’


महेश राजा
वसन्त-51
कालेज रोड, महासमुन्द
छ.ग.-493445
मो.-09425201544