ग़ज़ल-1 उनसे किसे उम्मीदे-वफा है। पत्थर में कब फूल खिला है।। सीने में फिर दर्द उठा…
Tag: अंक-4
करमजीत कौर का काव्य
इन्तज़ार है तेरा आज भी दरवाज़े पर निगाहें टिकाए बैठी हूं इस इन्तज़ार में कि कभी…
ग़ज़ल-1 उनसे किसे उम्मीदे-वफा है। पत्थर में कब फूल खिला है।। सीने में फिर दर्द उठा…
इन्तज़ार है तेरा आज भी दरवाज़े पर निगाहें टिकाए बैठी हूं इस इन्तज़ार में कि कभी…