ये यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ती-
कोई तो ऐसा तीर्थ हो
जहां मैं इन्हें अर्पण करूं
कोई तो ऐसी गंगा हो
जहां मैं इनका तर्पण करूं
पिंड दान करूं
पंडित को दक्षिणा दूं
क्या करूं
ये यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ती…
श्रीमती मधु सक्सेना दिनांक 23 फरवरी 14
वक्त गुजरते जाता है जैसे
दुख-सुख के दो किनारे में
बहता नदी का पानी
ऐसे ही बीत जाती है जिंदगानी
क्या खोया क्या पाया
क्या लिया-दिया
कुछ नहीं रहता मानी
जीते जी कुछ कर दिखा बेहत्तर
तो जान सफल जिंदगानी
श्री त्रिजुगी कौशिक 3 मार्च 13
तुमसे दिल की बात कहूं मैं
अपने हर जज्बात कहूं मैं
रोज सुबह तक मैं रो-रोकर
दुख को सारी रात कहूं मैं
आने वाला आयेगा ही
हर जाड़ा बरसात कहूं मैं
श्री ब्रजेश पाण्डे 13 नवंबर 13
तुम, मेरे लिए…
तुम,
ज़रूरी हो
मेरे लिए
ठीक उसी तरह
जैसे-
चिड़िया के लिए
ज़रूरी नहीं होता
आंगन,
आंगन के लिए
ज़रूरी है
चिड़िया की चहक…
श्री सुबोध श्रीवास्तव 14 फरवरी