काव्य-डा.सुजय कुमार शरण

वेलेन्टाइन डे

खुद को खुश करने के
मुझे मालूम हैं ढेर सारे तरीके
वेलेन्टाइन डे को मनाने के.
मैंने पसंद करना चाहा सुर्ख गुलाब
सुना है सुर्ख गुलाब
नहीं करता भावुक अब
पर करता है उत्तेजित.
वैसे भी फूल
खुश नहीं करते सबको अब.
सुना है आदमी की सोच
मिट्टी और गमलों से परे
उग रही है बटुए और संदूकों में
हो नहीं सकता जहां गुलाब.
सुना है तुम भी नहीं चाह रही
आज के दिन गुलाब.
पर मैं भी गुलाब की तस्वीर हूं
बंद लिफाफे में देना चाहता हूं
खुद को खुश रखने के लिए.
वक्त की आवाज
वक्त की आवाज
सख्त थी वो बात
तो क्या अनसुना कर दें
बेवक्त की वो बात.
उम्र कर रही हिसाब
गणित उसका है पर खराब
तो ठीक हम कर दें
जटिलताओं से भरा हिसाब.
उसूलों की लड़ाई में
अपनों की नाफरमानी में
तो क्या हार मान लें
इतिहास की सज़दा-ए-दारी में.
अस्तित्व बचाने की फिराक में
मन में धधकती लौ बचाने में
तो क्या बन जायें पत्थर
निभाने दुनियादारी में.

डॉ.सुजय कुमार शरण
शांतिनगर, रिंग रोड़ नं.-02,
बिलासपुर जिला-बिलासपुर छ.ग.