लघुकथा-बाल कृष्ण गुरु

निरूत्तर ईश्वर


काम में आते वक्त नौ साल की मुनिया पत्थर से टकराकर गिर पड़ी। घुटने में काफी चोट लगी थी। बहुत दर्द था। बाबूजी अस्पताल ले गए थे। डॉक्टर ने दवा लगाकर पट्टी बांध दी। जाते-जाते मुनिया को कुछ याद आया। वह अक्सर मां को कहते हुए सुनती थी, डॉक्टर तो धरती का भगवान होता है।
अचानक वह पलटकर पुकारने लगी, ‘डॉक्टर भगवान, डॉक्टर भगवान, सुनिए तो!’’
‘‘क्या है ? दवाइयां लिख दी हैं, दुकान से खरीद लेना।’’ डॉक्टर ने रूखेपन से कहा।
मुनिया ने उसके लहजे से अप्रभावित रहते हुए पूछा, ’‘डॉक्टर भगवान, मेरी शादी होगी कि नहीं, मैं डोली में बैठकर ससुराल जाऊंगी कि नहीं ?’’
डॉक्टर ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए कहा- ‘‘अभी तो रिक्शे में बैठकर घर जा।’’
घर पहुंचकर मुनिया ने मां से कहा, ‘मां, भगवान को भी नहीं मालूम कि आगे मेरी शादी होगी या नहीं!’’ मां लंबी सांस भरते हुए बोली- ‘‘हां बेटी, भगवान गरीबों का भाग्य लिखता है और भूल जाता है। मुझे तो लगता है, भगवान गरीबों का भाग्य लिखना ही भूल जाता है।’’

बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरू’
डॉ.बख्शी मार्ग, खैरागढ़
मो.-09424111454