पकने का समय कई दिनों से अब तक/लिखने का समय 8.00 पी.एम. से 11.35 ए.एम. दिनांक-30 जुलाई 2022
आदि देव
लेखक-सनत सागर, संपादक बस्तर पाति, जगदलपुर, छ.ग.
इस आलेख को पढ़ते हुये अनेक लोगों के मन में अनेक प्रश्न उठेंगे कि आखिर ये आज के दिन ही क्यों ? क्या वास्तव में ऐसा ही है ? और भी।
देश में अंधानुकरण और अंधी दौड़ के बुद्धिजीवियों के दो भगवान हैं। आइये जाने कौन कौन हैं।
यह देश रहने के लायक ही नहीं था। यहां हमेशा शोषण, मारकाट और अधर्म का बोलबाला था। किसानों की दीन हीन दशा को देख कर आंसू ही नहीं रूकते थे। कुछ धनाढ्य लोग और ….. लोगों ने पूरे समाज का जीना हराम कर दिया था। बेचारे लोग पानी पीने के लिये अलग कुंआ खोदते थे। और फिर जाने क्यों दूसरों के कुंयें में पानी पीने भी आ जाते थे। साला उस युग में एक भी धनी आदमी का कुंआ नहीं सूखा जिससे कि उसे किसी गरीब के कुंअें पर पानी पीने जाना पड़ा हो।
ठीक वैसे ही महिलाओं से छेड़छाड़ तो रोज की बात थी। इस सड़े गले गलीच समाज में समझ होती तब तो वह एक औरत की इज्जत करना जानता। हैवानों की दुनिया बसती थी इस देश में। औरतों का चलना दूभर था। मां कसम!
हर गली में सूदखोर था जो किसी गरीब की जमीन हड़पने की ताक में रात को भी जातगा था। किसानों को पकड़कर दारू पिलाता था फिर उनको सूद में धन देकर विदा करता था। किसान बेचारा खेतों में गुलामों की तरह काम करता था। उनसे काम करवाने वाले हंटर धर कर जब तब ठुकाई करते थे। मां कसम!
जिस देश में खेती करना और जीने का ढंग ही नहीं था वहां सुई कैसे बनती। बहुत पहले से सिले हुये कपड़े पहने जाते थे, कपड़े का आविष्कार हो चुका था परन्तु वो सुई जाने कहां से आती थी पता नहीं। ढाका की मलमल जिसकी साड़ी एक माचिस की डिब्बी में आ जाती थी, जाने किस बेवकूफ ने कोरी गप उड़ा दी। वैसे भी ढाका इस देश में कहां है। इस देश में जंगलों की बहुतायत का कारण यही था कि यहां के लोग हमेशा नंगे रहते थे। अब नंगे होकर सबके बीच घूम तो नहीं सकते थे तो वे पेड़ों की आड़ में चलते फिरते थे। जाने किस मूरख ने इन जंगलों को पूजापाठ से जोड़ दिया।
चूंकि लिखना पढ़ना आता नहीं था इसलिये कलम दवात का आविष्कार भी कौन बेवकूफ करता? है कि नहीं। वो तो सपेरों देश था ही। (आज भी तो है। ये बात अलग है कि विदेशियों को जब भी अतिथि बनाकर बुलाया जाता था तब सांस्कृतिक विरासत के नाम पर गांव ही दिखाया जाता था।)
और भी क्या क्या बताया जाय। पहले मुगलों ने इस देश में भवन बनाना सिखाया। उसके पहले और भी बहुत आये थे। चूंकि खाली जगह नहीं थी और बिल्डिंग मटेरियल्स की कमी थी इसलिये पहले पुराने झोपड़ों को तोड़ा गया फिर उनके मलबों से काफी निर्माण करना सिखाया। मुगलई भोजन बनाना भी सिखायां धन्यवाद!
इस भयंकर शोषण के दौर में जब मुगलों का राज था उसके बाद अंगेजों का राज आया, तब समाज का गरीब वग्र भयंकर परेशान था धनिक वर्ग से। ये बात अलग है कि इस देश पहले कुछ था ही नहीं सबकुछ तो मुगल और अंग्रेज देकर गये हैं फटीचरों को। गरीबों का हक मार लिया गया। काम कराने के बाद पैसा नहीं दिया जाता था। हर ओर लूटमार का माहौल था।
इस बीच कहां तो एक देव का जन्म हुआ। उनके जन्म होते ही हर और स्वर्ण की बारीश होने लगी। हर ओर आनंद ही आनंद की बरसा हो रही थी। ये बात अलग है कि भगवान-वगवान और अवतार-ववतार नहीं होता है। उन देवपुरूष ने अपने देश में लोगों को पहले जीना सिखाया, तब उन्होंने अपने भक्तों के माध्यम से पूरे विश्व में अपने विचारों की भांग घोलकर समाज को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
उन मार्क्स देव को मानने वाले बताते हैं कि मार्क्सदेव हर एक मार्क्सवादी और प्रगतिशील लेखक के घर रात बिताकर गये हैं। तब ही तो सारे के सारे एकदम से भयंकर समझदार और जानकार हो गये। इन्हीं देव के समकालीन एक देव का और जन्म हुआ। ये देवता जैसे ही धरती पर आये तब कहीं जाकर सबको मालूम पड़ा कि कितना भयंकर शोषण, अत्याचार, बलात्कार आदि मचा था इस देश में। ये देव थे प्रेमचंद देव! जिन्हें दुनिया प्रेम से मुंशी जी कहती है। इन्होंने जो लिखा अपरिवर्तनीय है। जो भी बताया सच ही बताया। इसलिये ये पूज्यनीय है।
आप ईश्वर के कहे का अनुनाद करते हैं पागल हो सकते हैं परन्तु प्रेमचंद जी की बातों का अनुनाद करते हुये आप दुनिया के सम्मानित बुद्धिजीवी माने जाते हैं। मार्क्सदेव और प्रेमचंद जी एक दूसरे के पूरक थे। इन दोनों के दुनिया में आने के बाद ही इस देश ने पहली बार कपड़े पहनने सीखे तो बोलना बात करना, दया भाव सीखा। लूटमार छोड़ी बलात्कार छोड़ा। गरीबों का शोषण छोड़ दिया।
इसलिये इस दिन इनको मानने वाले अनुयायी उनकी रचित ठाकुर का कुंआ पढ़ते हैं, हामिद और पंच परमेश्वर पढ़ते हैं और जानते हैं कि इस देश पहले क्या हालचाल थी। तो एकबार हम सब मिलकर कहें-
आदि देव मुंशी प्रेमचंद की जय!
परमआदि देव मार्क्स देव की जय