भक्ति बाहर
भीतर कुछ और
शक्ति का घर।
भगवान भी
खुश उस पर है
जो राक्षस है।
झूठा आदमी
पूजा जाता सर्वत्र
सत्य की कमी।
पूर्व थे पशु
अब आदमी बन
राक्षसी करे।
मानव लीला
से कहीं भिन्न नहीं
ईश्वरी लीला।
समझाया भी
मत जा उस रास्ते
माना न, रोया।
सात सुरों से
हुआ चमत्कार था
बरसा पानी।
कृति दर्पण
पाठकों के समक्ष
ग्रन्थ अर्पण।
गोपीनाथ कालभोर
पुष्पगोरिनी
जी.डी.सी.गेट(पूर्व) के सामने, पड़ावा, खण्डवा, म.प्र.-450001