मैं बस्तर बोल रहा हूॅ
अपने मन के तराजू के
पलड़े तोल रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
अपना ही अपनों में यहाँ विष घोल रहा
बच्चा बूढ़ा यहाँ नित पव्वा खोल रहा,
शिरीष के फूलों की जगह गांजे की गंध झेल रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
कितने लूट के चले गए, मुझे कितने लूट रहे
करने मेरे गर्भ के टुकड़े आपस में जुट रहे,
आज अपनो का दंश झेल रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
गर्भ में मेरे सोना, चाँदी, पीतल, हीरा, जस्ता
फिर भी यहाँ के लोगों का खून, पानी से भी है सस्ता
आज अपनों से अपनों का शोषण देख रहा हूँ
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
भोले-भाले लोगों का मेरे ऑचल में है बसेरा
हर घड़ी हर पल यहाँ रहता मौत का पहरा
खिल-खिलाते खेतों की जगह बारूद से झुलस रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
कितने पाप मैं सह रहा हूँ, यह मैं ही जानूं
कौन सी करनी का ये फल, यह मैं ना जानूं
खून से लथपथ काया मेरी घुट-घुट कर रो रहा हूँ
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
बस्तर का बस्तरिया रोवे, हंस रहा जगसारा
अपने लहू से घायल है बस्तर हमारा
मैं बस्तर की माटी बस्तर की व्यथा गा रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
कहीं माँ के खोए लाल, बहनों के आँसू देख रहा हूँ
विधवा की उजड़ी माँग
बच्चों की सूनी पथराई आँखे देख रहा हूँ.
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
कही बूढ़े बाप का छूटा सहारा
कहीं भाई की टूटी बाहें देख रहा हूँ
हर गांव में सन्नाटा सूनी राहें देख रहा हूँ
मैं बस्तर बोल रहा हूँ
मैं बस्तर बोल रहा हूँ.
लब पे नाम बस्तरिया
डाल-डाल पे लिखूं नाम बस्तर….
पत्ते-पत्ते पर बस्तरिया….
रोम-रोम मेरा बोले बस्तर
लब पे नाम बस्तरिया.
स्वर्ग से सुन्दर बस्तर अपना
देखूं तो लगता है अपना
ऊंचे-ऊंचे पर्वत यहां
कल-कल छल-छल करते नदी झरना
देखूं तो मोह जाये मोरा जिया
डाल-डाल पे लिखूं नाम बस्तर…..
पत्ते-पत्ते पर बस्तरिया….
भारत का गौरव बस्तर
यहाँ ऊंच नीच का फर्क नहीं,
इनके आंगन देवी रमतीं
देवों का स्वर्ग यहीं,
भोला-भाला रूप निराला
बस्तर का बस्तरिया
डाल-डाल पे लिखूं बस्तर….
पत्ते- पत्ते पर बस्तरिया….
बस्तरिया जब झूमे नाचे गावें
पेड़ों के पत्ते ताली बजावें
नदी झरने साज मिलावें
पक्षी भी सुर में गावें
मैं बस्तर की माटी,
बस्तर मेरा प्यार है
मैं बस्तर की जाति,
बस्तर मेरा संसार है
डाल-डाल पे लिखूं बस्तर….
पत्ते-पत्ते पर बस्तरिया….
रोम-रोम मेरा बोले बस्तर
लब पे नाम बस्तरिया….
अरविंद ‘‘बहार’’
जगदलपुर जिला-बस्तर छ.ग.
मो.-9685204146