हायकू-उषा अग्रवाल ‘पारस’

करे आहत
झुर्रियां, झिड़कियां
ज़िन्दा चाहत.

फैला देता है
सन्नाटा ही सन्नाटा
यादों का शोर.

भैय्या चिल्लाये
चाहे पापा गुर्राये
मां तू मुस्कुरा.

चुप रहके
आदत है तुम्हारी
खूब बोलना.

कुशासन में
दुःशासन अनेक
कृष्ण न एक.

मुरझायेंगे
फिर भी खिलते हैं
फूल व दिल.

बिना गुलाल
गुलाबी हुये गाल
बूझो तो हाल.

हिना से नही
रचाई है हथेली
तेरे प्यार से.

बिन बुलाये
मेहमान सा आया
रूक ही गया.

माफ़ करना
इश्क में दस्तूर है
ख़ता करना.

बोलती आंखें
शरमाते अधर
देखूं या सुनूं.

वट सावित्री
सुहाग किया पक्का
कच्चे सूत से.

सुन्दर जाला
मकड़ी बुनती है
अपने लिए.

बुन रही हूं
स्वेटर संग ख़्वाब
रंग-बिरंगे.

लिखूं कविता
पेन कलम संग
दे दो एकांत.

तोड़ा माली ने
खिला हुआ गुलाब़
कली गवाह.

ऊंचा उड़ने
उसे दिये थे पंख
लौटा ही नहीं.

उषा मुस्काई
चीर तम का सीना
आस जगाई.

लिख न पायें
कविता कहानियां
आलोचक हैं.

पुल नहीं है
संवादहीनता में
मन की भाषा.

श्रीमती उषा अग्रवाल ‘पारस’
108 बी/1 मृणमयी अपार्टमेण्ट,
खरे टाउन, धरमपेठ, नागपुर महाराष्ट्र
मो.-09028978535
शिक्षा-एम.ए. हिन्दी
अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सतत् प्रकाशन
आकाशवाणी से नियमित प्रसारण
लघुकथा वर्तिका का संपादन
‘‘हायकूयाना’’ हायकू संग्रह तथा
‘‘हायकूव्योम’’ हायकू संकलन का शीघ्र प्रकाशन