काव्य-विमल तिवारी

प्यार के लिए

प्यार के लिए जीता है कोई,
प्यार के लिए तड़पता है कोई.
अंबर झुका है क्यों भू पर…….?
सिर्फ प्यार के लिए!!
पाकर प्यार प्रकृति का
पलता है, वन का नन्हा पौधा.
इतना प्यार जब जब देती प्रकृति,
सीख हमें यह आती है!!
क्यों रहे जाति के चक्कर में,
मतभेदों का जीवन नश्वर.
सहयोग जीवन का दर्शन है
प्यार ही तेरा सब कुछ!!
प्यासी है धरती, प्यार के लिए
चित्कारता है क्यों आसमां, प्यार के लिए
किस कारण दिखती है प्रकृति हरी
प्यार के ही खातिर, प्यार के लिए!!
देखा हूं मैं उस बन्दरी को,
जो मरे बच्चे को वक्ष में चिपकाये रहती
इतना प्यार उसमें है तो
हम क्यों ना जीयें, प्यार के लिए।।

बस्तर की बाला

मुर्गे ने दी बांग, चिड़िया चहचहाई।
नन्हीं सी बाला अपनी दीदी को जगाई.
पहाड़ों की ओट से, निकला भोर का सूरज
बालाएं, हसियें सी झुकी हुई
बीन रही, महुए का फूल
मुस्कुराता है पेड़, मुस्कुराती पत्तियां
बीहड़ वनों में निर्भिक घूमती.
बता तू क्या…? वन की बाला ?
टेसू आता नव रंग लिए
पलाश तुझे निहारता है.
सूरज भी नव-किरणें तुझ पर
पारस सी बिखराता है.
तुझे देख नदियां गाती
झरना भी गुनगुनाता है.

विमल तिवारी
तिवारी निकुंज,
धरमपुरा जगदलपुर
मो-07389335263