काव्य-सुनील लम्बाडी

सूर्य की किरण

सूर्य की किरण जब है पड़ती
आंखें हैं होती उज्जवल
कूकडू कूं की आवाज पंछियों की चहचहाट
हमे है जगाती
रोज उठ नित्य पाठ करते कर्म की धारा
बहाते पसीने की गंगा
तब होता जीवन उज्जवल
सूर्य की किरण जब है पड़ती
आंखें हैं होती उज्जवल
लहू का स्वेद बनाकर बहाते
तब आता अनाज घर में
मिलती आमदनी कम, पर उसी में खुश रहना
ऐसी माया इस धरा में
खुशियों में सुख और अश्रुओं में दुख
करते कर्म रोज पर मिलती आमदनी कम
मालूम नहीं हम क्या करें,
जीवन संवारें या गंवाएं
सूर्य की किरण जब है पड़ती
आंखें हैं होती उज्जवल
मानव तो मानव है उसकी आकांक्षा है बड़ी
निरक्षरता समस्या बड़ी, करना है इसका निदान
गांव-गांव, डगर-डगर शिक्षा का प्रकाश फैलाकर
तब ही होगा जीवन उज्जवल, होंगे कृषक शिक्षित
शिक्षित होगा समाज, व्यक्ति उसे समझ पायें
उसकी पहचान है धरा से, वे पायें अपना अधिकार
जान पायें अगर वो, क्या है उनकी गरिमा
तर जायेंगे कृषक तो होगा हमारा विकास
मिलेगी दो वक्त की रोटी, होगा उनका भी सम्मान
सूर्य की किरण जब है पड़ती
आंखें हैं होती उज्जवल

लम्बाड़ी सुनील कुमार
बी.एस.सी. फाइनल
ग्राम-गोल्लागुड़ा
पोस्ट- चंदनगिरि
तहसील-भोपालपटनम जिला-बीजापुर
मो.-9407938102