काव्य-माधुरी राऊलकर

घर से लड़ना

इधर से लड़ना या उधर से लड़ना
आसान नहीं अपने घर से लड़ना.
यहां तो हर किसी को पड़ता
जिन्दगी के लम्बे सफर से लड़ना.
हिम्मत सभी लोग रखते लेकिन,
कितना मुश्किल है बुरी खबर से लड़ना.
तब कहीं मंदिर में जा के जगह मिली,
जब से उसने सीखा पत्थर से लड़ना.
हर मुश्किल आसान हो जायेगी तो,
तू भी सीख ले दिल और जिगर से लड़ना.

हम नहीं देते

होकर उनपे मेहरबान, हम नहीं देते,
अपने हिस्से का आसमान, हम नहीं देते.
भले ही खाली रखना पसंद करेंगे पर,
बेईमानों को मकान, हम नहीं देते.
अदालत की लड़ाई में देना पड़े तो,
कभी भी झूठा बयान, हम नहीं देते.
जितना जरूरी है उतना ही पढ़ा करते,
कभी बेवजह इम्तीहान, हम नहीं देते.
प्यार, वफ़ा, दोस्ती, शोहरत कुछ देर की,
इनकी जुदाई में जान, हम नहीं देते.

लड़ने का अरमान

कश्ती कभी तूफान छोड़ जाती है
लड़ने का अरमान छोड़ जाती है.
इतनी बड़ी जमीन पर अपने लिए,
एक टुकड़ा आसमान छोड़ जाती है.
जीकर कभी ऐसा लगता है जैसे,
ये जिन्दगी एहसान छोड़ जाती है.
सारी जिन्दगी चुभते ही रहते हैं,
ऐसे तीर जुबान छोड़ जाती है.


श्रीमती माधुरी राऊलकर
प्लॉट नं.-76, रामनगर
तीसरा माला, नागपुर महाराष्ट्र
फोन-07122537185
शिक्षा-एमए बीजे
चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित, देशभर की पत्र पत्रिकाओं में
प्रकाशित, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर काव्यपाठ