काव्य-श्रीमती सुषमा झा

वो चुप है

सब उससे बार-बार कहते हैं
लो यह आसमां तुम्हारा है
उड़ लो चाहे जितना
पर उड़ते ही पर काट लेते हैं.
सब उससे कहते हैं
लो यह जमीं तुम्हारी है
चलना क्या दौड़ लगाओ
पर चलते ही पैर काट लेते हैं
सब उससे कहते हैं
ये वासंती बयार तुम्हारी है
खुली हवा का आनंद लो
पर सांस लेते ही गला दबा देते हैं
अब भी सब उससे कहते हैं
सब कुछ तुम्हारा है
वो कहते उसे कुछ नहीं चाहिये
किसी का दिया वह नहीं लेती है.
सब कुछ न कुछ कहते हैं
पर वो नहीं सुनती है
वही करती है जो उसे करना है
वो बस सपने बुनती चुप रहती है
सब बार-बार चुप्पी तोड़ते हैं
पर वो अब चुप ही रहती है
बस इंतजार करती है समय का
जब समय उसके अस्तित्व को बतायेगा.

मां की बातें

मां कहती थी
बिटिया द्वार के पास
एक नीम का पेड़ लगा ले
मन हो तो थोड़ा पानी डाल ले.
मां कहती थी
घर के पीछे मैदान में
एक बड़ एक पीपल भी रोप ले
मन ही तो कभी दीप जला ले.
मां कहती थी
बिटिया हंसकर
बोल ले पड़ोसी से
मन हो कभी तो साथ खाना खा ले.
मां कहती थी,
थोड़ा पानी खरच
ज्यादा पानी पी
मन हो तो कभी वर्षा का जल बचा ले.
मां जानती थी,
एक दिन पानी नहीं बचेगा
संबंध भी बिगड़ेंगे
अंधकार से घिरे घर-द्वार
आस-पड़ोस को तरसेंगें.
मां अब भी कहती है,
पर अनपढ़ की कौन सुने
सब हंसते हैं
हम पढ़े-लिखे हैं
इसका दंभ भरते हैं


श्रीमती सुषमा झा
प्राचार्य बस्तर हाई स्कूल,
जगदलपुर
मो.-09425261018