नयी कलम -आशीष सिन्हा

ख़ामोश़ बस्तर

मैं खा़मोश़ बस्तर हूं
मेरे दुख को कोई क्या जाने
ख़ामोश़ी मेरी बयां कर रही
मैं डरा हुआ हूं, सहम गया हूं
सुन-सुन कर बंदूक की आवाजें
मैं खा़मोश़ बस्तर हूं
मेरे दुख को कोई क्या जाने.
हैं लोग यहां के अत्यंत सरल
आधुनिकता से परे
जो कल तक मेरी रक्षा करते थे
छाती पे मेरे खड़े वही बंदूक ताने
मैं खा़मोश़ बस्तर हूं
मेरे दुख को कोई क्या जाने.
दुख तो होता मुझे और भी जब
मेरे अंगों को काटते हैं मेरे ही लाल
इन्हें कैसे बताऊं, कैसे समझाऊं
मां को दुख देकर बेटा न होगा खुशहाल.


आशीष सिन्हा
शासकीय इंजीनियरींग कालेज
बायज् हास्टल
धरमपुरा -3, जगदलपुर
मो.-8889680355
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