यात्रावृतांत -डॉ. रूपेंद्र कवि

’’श्री श्री लॉज -खोली नम्बर पाँच’’

मैं और भैया ( मेरे सहकर्मी डॉ. सिंह, मेरे बड़े भाई हैं.) के साथ जाति सम्बंधी अनुसंधान के लिए 27 जनवरी 2014 की सुबह-सुबह 08 बजे जगदलपुर बस स्टेड से बस पकड़कर सुकमा के लिए रवाना हुए. बस के आम सफर के रूकने-चलने का क्रम पूरा कर 12 बजे सुकमा पहुंचे. अब सुकमा, पहले बस्तर, फिर दंतेवाड़ा जिला से अलग होकर एक नया जिला बना है और एक कस्बाई शहर सा लगता है. हमने पता किया तो जरा अच्छे दर्जे का एक लॉज ’’श्री श्री लॉज’’ मिला. वहाँ खोली नम्बर पाँच में ठहरना तय हुआ.
कुछ देर बाद तय कार्यक्रम के अनुसार मोबाइल पर दो व्यक्तियों से संपर्क हुआ. लगभग 50 की उम्र के दो व्यक्ति वहां पहुंचे. पहला घासीराम नाग और दूसरा सीताराम नाग, दोनों पेशे से शिक्षक हैं. दोनों अतकारीरास गांव के निवासी हैं, जहाँ हमे जाना था. दोनों का हाल-निवास सुकमा ही है. दोनों अपनी मोटर सायकल पर आये हुए थे. मैं घासीराम के साथ और भैया सीताराम के साथ, उनकी मोटर सायकल पर बैठकर सुकमा से निकले. नगर मार्ग तक अच्छी सड़क, वहां हल्की भीड़, पर वहां से जैसे ही हम दंतेवाड़ा सड़क की ओर मुडे़, सुनसान रास्ता! कुछ-कुछ दूरी पर सड़क कटी हुई या कटी सड़क पर सुधार की हुई मिलती. गाँव के लोग, विशेषकर बस्तर के आदिवासी निःसंदेह सीधे व सरल स्वभाव के होते हैं. घासीराम व सीताराम मूलतः तो आदिवासी ही हैं, यद्यपि वे गुरूजी हैं, पढ़े- लिखे हैं, इस समय सुकमा नगर में रहते हैं, तो थोड़ी चतुराई व वाकचातुर्य स्वाभाविक है. हम चारों की बातचीत का क्रम जारी था. कभी मोटर सायकल की ’’ध्ां….’’ की आवाज तो कभी जोर-जोर से ’’नहीं साहब! ऐसी बात नहीं है’’ तो कभी ’’अब सब बदल गया है साहब’’ की आवाज सुनने में आती. ग्राम पंचायत मुरतोण्ड लिखा हुआ बोर्ड दिखा. मैंने पूछा ‘घासीराम गाँव और कितना दूर है?’तपाक से उसने कहा ‘’बस साहब ज्यादा दूर नहीं है!’’
कुछ आगे चलकर एक कच्ची सड़क पर मुडे़ तब तो मुझे लगा मानो फटफटी नृत्य प्रतियोगिता हो रही हो. पत्थर, गिट्टी, गड्ढे में नाचते-नाचते हमारी दोनों मोटर सायकलें आगे बढ़ रहीं थी. तब भैया ने सीताराम से पूछा ‘’और कितनी दूरी पर गाँव है?’’ उसने भी तपाक से वही जवाब दिया ‘बस साहब पहुंचने वाले हैं!’’ मोटर सायकिलां की ’भों..भों…’ की आवाज के बीच मैंने पूछा ‘‘अरे भाई तुम लोग तो गाँव की दूरी 15 किलोमीटर बताये थे, लगता है हम तो ज्यादा चल चुके हैं.’’ तब घासीराम ने कहा ’‘हाँ, साहब 10 किलो मीटर पार कर चुके हैं.’’ और कुछ देर बाद एक दो घर दिखे मुझे. परिवेश से ही मुरिया आदिवासी बस्ती लगी. पूछने पर पता चला कि वो तातीपारा, मुरिया आदिवासियों का मोहल्ला ही है. वहां दोनों ने अपनी मोटर सायकल रोककर बताया ‘’साहब! यहां से ग्राम अतकारीरास शुरू होता है.’’
अब मैं और भैया एक संतुष्टी भरी मुद्रा में एक दूसरे की ओर देखे, कि चलो अब हम गंतव्य तक पहुँच ही गये. फिर मोटर सायकल पर सवार होकर आगे बढ़े. फिर बातें होने लगी. वे हमें बताये कि इस गाँव में पूरे नौ मोहल्ले हैं- तातीपारा, भण्डाररास, दौड़ाभाटा, जरलोडीही, रामपुराम, कोमटीगुड़ा, पुजारीपारा, पटेलपारा. इनमें से आठ मोहल्ले में हल्बा आदिवासी रहते हैं, एकमात्र तातीपारा में मुरिया समुदाय के लोग रहते हैं. लगभग ढाई -तीन किलोमीटर बाद पटेलपारा आया. वहाँ एक मंदिर दिखा, मंदिर के सामने दोनों मोटर सायकल रूकी और घासीराम ने कहा ‘साहब चलिये, अब हम पहुंच गये. तब तक डेढ़ बज चुका था. वहाँ पहुंचते ही एक सेवानिवृत्त बुजुर्ग सीताराम अतकारी व समाज के मुखिया सुखराम कश्यप ने हमारा स्वागत करते हुए ’’जुहार साहब!’’ कहकर बैठने को एक खटिया दिया. थोड़ी ही देर में लच्छिधर नाम का लड़का ’लाल चाय’ व नीबू का फॉक लाकर परोसा. सुखराम ने कहा ’’लीजिए ’डिकासन चाय’ है साहब.’’ उसका मतलब बिना दूध वाली लाल चाय से था. मैंने बड़े चाव से कप उठाया, लाल चाय मुझे ज्यादा पंसद है. भैया भी इतने देर के सफर के बाद मिली चाय बड़े चाव से पी रहे थे. हमारे साथ बैठे सभी सुर्र-सुर्र की चुस्की के साथ चाय पी रहे थे. उसी बीच घासीराम व सीताराम ने बताया कि हमारी जाति से संबंधित जाँच के लिए दोनों साहब आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान जगदलपुर कार्यालय से आये हुए है. गाँव में 10 मिनट में खबर फैल गयी और लोग इकट्ठे हो गये. हम वहाँ से ग्राम देवी मुसरीयामाता मंदिर के सामने बने ’गणेश कोठार’ (मंडप) में बैठे थे.
ग्रामवासी हल्बा आदिवासी भाईयां ने ’जुहार साहब!’, तो किसी ने ’राम-राम साहब!’ कहकर अभिवादन किया. एक बुजुर्ग मनीराम उम्र लगभग 70 वर्ष, देखने में कृशकाय, बड़ी उम्मीद के साथ हमसे पूछा ’साहब! ए दांय आमचो काम होयदे काय?’(अब हमारा काम होगा ना?). मैंने दिलासा देते हुये कहा ’हम उसी लिये तो आये हैं.’ प्राणधर ने कहा ’साहब कुछ ठेकेदारां, बदमाशों, वन व राजस्व के अधिकारी -कर्मचारियों ने हमारे जमीन के सागौन वृक्षों को काटने के लिए भू-अभिलेखों में जातिनाम ’हल्बा’ के स्थान पर बदलकर ’तेलंगा’ कर दिया है. जिससे कारण हम शासन द्वारा मिलनी वाली अनुसूचित जनजाति के आरक्षण की सुविधाओं से वंचित होते आ रहे हैं. फिर सोमारू ने कहा ‘‘आज स्थिति यह है कि हम, घर के हैं न घाट के, हमारे सागौन का जंगल भी गायब हुआ और हाथ कुछ नहीं लगा.’’ तब परदेशी ने कहा ’’साहब! अब तो हमारी तकलीफ दूर कर दीजिए, क्योंकि एस.डी.एम., तहसीलदार तो कई साल से सिर्फ पेशी बढ़ा रहे हैं.’’
तभी तपाक से एक पढ़े-लिखे लड़के सुखराम ने कहा ‘’हम तो मुख्यमंत्री तक को आवेदन दिये हैं सर, लेकिन लगता है अभी भी लोग हमारी फाईल गायब कर देते हैं. सुना है कि आप लोग ईमानदारी से अपना काम करते हैं. कृपया हमारा काम ठीक से कर दीजिए.’’
ऐसे प्रश्न-उत्तरों का दौर चलता रहा, शाम का अंधेरा होने लगा. हम अपनी बात रोक कर औपचारिक रूप से काम समाप्त कर वहाँ से सभी को ’जुहार’ के साथ अभिवादन कर वापसी का रूख किये.
सभी ने आशा भरी नज़रों से हमारी ओर निहारते हुए विदाई दी. फिर मैं घासीराम की मोटर सायकल पर व भैया सीताराम की मोटरसायकल पर सवार होकर सुकमा के लिए रवाना हुये. तब तक गोधूलि बेला हो चुकी थी. गाड़ी की गति कुछ तेज करते हुए ’भों..-भों..’ की आवाज के साथ मुख्यमार्ग तक पहुंचे. गति तेज करते हुए आगे बढे. इस दौरान बीच-बीच में एक तरफ नक्सली समस्या व दूसरी तरफ प्रशासकीय अधिकारी – कर्मचारियों की मनमानी, तो कभी राजनीतिज्ञों की विचार विहीन कार्यशैली पर टुकड़े-टुकड़े में बातें हो रहीं थी. लगभग आठ बजे रात सुकमा पहुंचे. हम मुँह-हाथ धोकर तैयार हो गये. इसी समय तय कार्यक्रम में मित्र डॉ. सेठिया, जो कि सुकमा शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर हैं व मित्र प्रशांत जोशी- जो कि जिला सुकमा में सहकारिता एवं विपणन के जिला अधिकारी हैं, वहाँ पहुंचे. दोनों मित्रों से सुकमा के बदलते परिवेश, नया जिला बनने के बाद, गांधी जी के विकेन्द्रीकरण का फलीभूत होता सपना व तात्कालिक समस्याओं पर चर्चा हुई. उनके वापस होने के पश्चात हम भी भोजन कर विश्राम के लिए वापस लॉज पहुंचे.
भैया दिन भर की थकान के बाद सोने के लिए तैयार हो गये. मैंने भी उन्हे शुभरात्रि का अभिवादन कर लेटने की तैयारी की। सोने के पहले आदतन जब डायरी निकाली तो सारी बातें मानसपटल पर घूमती रहीं. बस मैंने उन यादगार पलों को डायरी के पन्नों में कैद कर लिया.


डॉ.रूपेन्द्र कवि,
’’कवि निवास’’,
ग्राम व पो.मालगॉव,तह.बकावंड,
जिला बस्तर(छ.ग.)
मो.-09406200426