कविता कैसे बदले तेरा रूप-अंक-25

कविता का रूप कैसे बदलता है देखें जरा। नये रचनाकार ने लिखा था, नवीन प्रयास था इसलिए कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसी कविता को कैसे कसौटी पर खरा उतारें-
गरीबी
बड़ी मुश्किल से उसका घर बसा था
एक टाइम का भोजन ही सपना था
कपड़े, तन को अचरज से ही देखते,
अभी ही तो आये थे रहने को
और मेहमान बन गये,
नरमाई की परिभाषा भी जाने किसने गढ़ी
कंकड़ों में तो मुझसे खुशी की लहर थी,
पसीने की गंध यूं आंखें फाड़ फाड़ देखती
कि इत्र भी खुद को सूंघने लग जाते,
कपड़ों मे जेबों की जरूरत पर ही
कई बहसें हो चुकी थी
हर बार उसको ही प्रथम सम्मान मिलता था,
स्वाद कलिकायें यूं तन कर खड़ी हो जाती
मानों उन पर ही दांत उग आये हों
डर के मारे कुछ स्वाद
बाहर ही खड़े रह जाते।
यही कविता कुछ अन्य पंक्तियां जोड़ने पर देखें कैसे रूप बदलकर रोमांचित करती है-
गरीबी
बड़ी मुश्किल से उसका घर बसा था
एक टाइम का भोजन ही सपना था
कपड़े, तन को अचरज से ही देखते,
अभी ही तो आये थे रहने को
और मेहमान बन गये,
नरमाई की परिभाषा भी जाने किसने गढ़ी
कंकड़ों में तो मुझसे खुशी की लहर थी,
पसीने की गंध यूं आंखें फाड़ फाड़ देखती
कि इत्र भी खुद को सूंघने लग जाते,
कपड़ों मे जेबों की जरूरत पर ही
कई बहसें हो चुकी थी
हर बार उसको ही प्रथम सम्मान मिलता था,
स्वाद कलिकायें यूं तन कर खड़ी हो जाती
मानों उन पर ही दांत उग आये हों
डर के मारे कुछ स्वाद
बाहर ही खड़े रह जाते।
एक ही चीज से उसका डर बना रहता
वो थी उसकी खुद्दारी।