क्षणिकाएं-त्रिलोक महावर

क्षणिकाएं

1
सुख के दिन
उड़े फुर्र से
सुख के दिन
ज्यों उड़ी गौरैय्या
टहनी पर से
झटपट दस तक
गिनती गिन!
2
शाम
फिर उतरी है
घाटी में शाम
पूछती डाकिए की तरह
मेरा नाम!
3
जिंदगी
कागज की कश्ती
कलम की पतवार
हौसले का कुतुबनुमा
आंधियां बेशुमार!
4
जोगन सी शाम
वो पहाड़ों पर
धुआं धुआं
धूनी रमाये
जोगन सी बैठी है शाम!
5
बसंत
बस इतनी सी
शिकायत रही मधुमास से
वे पिलाते रहे
पर हम ना उबरे प्यास से!
6
रिश्ते
छूते ही छुईमुई हो गए
रिश्ते कभी लाजवंती कभी रुई हो गए
स्वार्थ जब तलक सधता रहा
प्रेम शुक्ल पक्ष में चंद्रमा सा बढ़ता रहा
स्वार्थ जब ना सधा
रिश्ते सुई हो गए!

7
बदली
बदली फिर झुकी
पर्वत पर प्यार से
भीग गया तन मन
पहली फुहार से!
8
एहसास
गुलाब की पंखुड़ी
पर शबनम सा
तुम्हारा एहसास!
9
प्रेम
द्वैत क्या
अद्वैत क्या
एकाकार होने की
साधना है प्रेम!
10
तृप्ति
तृप्ति के लिए
काफी है
सिर्फ दो बेर
तुम्हारे हाथों से!
11
वृंदावन यही है
गुलमोहर नहीं
कदंब की छांव है
आओ
वृंदावन यही है!
12
इतना ही
एक गुलाब
पांच मोगरे के फूल
मुट्ठी भर खुशबू
और
शब्दों से परे एहसास
इतना ही है मेरे पास!