काव्य-त्रिलोक महावर

पहचान

बिना सोचे समझे
कहीं भी
सिर झुक जाए
बगैर सहमति गिनती के काम आए
यह मुमकिन नहीं है!
ये सर उठने से भी
बाज नहीं आता है
यह बात अलहदा है
जुड़े हाथ विनम्रता की वजह हैं
निरीह समर्पण नहीं,
इनका हवा में लहराना
सदैव समर्थन ही नहीं होता!
उँगलियाँ जब ठान लेती हैं
भिंची हुई मुट्ठियां
ऊपर उठती हैं तनी हुई
फट पड़ता है आकाश
आते हैं भूचाल,
बिजली की हर कौंध में
होती है मेरी पहचान!

बेजान फाईल

एक फाईल बेजान
फिर भी रेंग रही है
फाईल में हैं कुछ कागज आतुर
अपनी पीठ पर हस्ताक्षर का वजन ढोने को,
फाईल किसी के लिए
है महज कागजों का पुलिंदा
किसी के लिए धडकता दिल है,
आदमी हो जाता है बेजान
फाईलंे चलाते – चलाते
फाईल में बंधा कागज का टुकड़ा फड़फड़ाता है
लाल फीते से आजादी के लिए,
आदमी न कुछ सुनता है, न बोलता है
सिर्फ फाईल चलाता है अपनी मर्जी से
उसके लिए फाईल महज
एक फाईल है!

 

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