कहानी-दफा एक सौ नौ-त्रिलोक महावर

दफा एक सौ नौ

धूप बहुत तेज थी और आसपास कोई हरा पेड़ भी नहीं था। एकमात्र ठूंठ था, जिसकी छाया न के बराबर थी। इसी ठूंठ के सहारे बड़े से संदूक के ऊपर एक लड़की बैठी थी, उसने अपना चेहरा कुछ इस अंदाज से पल्लू से ढंक रखा था मानो घूंघट कर रही हो। मैंने उड़ती हुई नजर उस पर डाली। तेज कदमों से कमरे में चला गया कुछ देर तक कामकाज निपटाने के बाद जब वापस लौटा तो देखा वह लड़की वैसे ही बैठी हुई थी। थोड़ा आश्चर्य हुआ। जेठ के महीने की तेज धूप। समय भी लगभग 12ः00 बजे का। एक ठूंठ की अपर्याप्त छाया। देखने से ऐसा मालूम हो रहा था लड़की शादीशुदा है और किसी का इंतजार कर रही है। यकीनन अपने पति के इंतजार में ही होगी। आसपास सूखी पत्तियां पड़ी थी, जिन्हंे वह बार-बार देखती, कभी अंगूठे से मिट्टी कुरेदती। एक बार उसने सर उठा कर आसमान की ओर देखा सूरज सर पर था।
आसपास के लोग भी कम होते जा रहे थे। बसंतपुर दूर दराज का गांव, उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। आने जाने का साधन केवल खटारा बसें ही है। ऐसा लगा शायद उसका पति कुछ सामान लेने गया हो। बस के आने में कुछ देर हो। इसलिए वह इंतजार कर रही थी।
गौर से देखने पर उसके हाथों में मेहंदी लगी दिखी। पैरों में आलता भी लगा था। उसकी अभी अभी शादी हुई होगी। मन में सवाल उठने लगा यदि नवविवाहिता है तो इसको इस कदर अकेला छोड़ कर उसका पति कहां चला गया। कैसा लापरवाह है। लोग शादी तो कर लेते हैं लेकिन अपनी पत्नी की परवाह भी नहीं करते। इस समय यहां आस-पास में बहुत ज्यादा लोगों की मौजूदगी भी नहीं। एक नवविवाहिता इंतजार करती हुई इस तरह बैठी हुई। मन में कई तरह के सवाल उठने लगे कहीं ऐसा तो नहीं बिना सहमति के शादी हुई हो और कोई ऐसा कारण बना हो जिसके कारण पति इसे छोड़कर चला गया हो। यह भी हो सकता है कि वह कोई काम से गया हो। कोई सामान लाने गया हो। फिर लगा शादी सहमति से हुई या असहमति से इससे क्या फर्क पड़ता है। शादी तो हुई है, और उसके हाव-भाव से ऐसा लग रहा है कि वह अपने पति का इंतजार कर रही थी।
देखने से ऐसा लग रहा था व ग्रामीण क्षेत्र से थी। लेकिन उतनी भी ग्रामीण नहीं। थोड़ी पढ़ी-लिखी मालूम होती थी और उसके हाव-भाव से लगता था कि थोड़ी समझदार भी।
इसी बीच हवा का एक तेज झोंका आया और काफी धूल उडी। थोड़ी देर बाद गर्द गुबार छंट गया। धूल के कारण वह थोड़ी परेशान हुई। उसने उठकर अपने कपड़ों पर लगी धूल झाड़ी। चारों तरफ घूम कर आशा भरी नजर से देखा। उसे कहीं कोई आशा की किरण नहीं दिखाई दी और उसका चेहरा उदासी से भर गया। मन में आया उससे पूछें उसकी दिक्कत क्या है। फिर सोचा रहने दो क्या करना। यदि बस के इंतजार में है तो थोड़ी देर में बस आ जाएगी। पति के इंतजार में है तो उसके पति का काम है वह आएगा और इसे संभाल लेगा। फिर मन में सवाल उठा कोई भी पति इतने लंबे समय तक अपनी पत्नी को अकेला छोड़ कर जा सकता फिर बस का इतना लम्बा अंतराल तो संभव हो नहीं सकता।
अब उसकी उम्मीद जवाब दे रही थी। उसकी बेचैनी को देखते हुए सोचा मदद की जाये उसके पास जाकर मैंने पूछा यहां क्यों बैठी हो। तुम्हारे साथ कौन है, तुम्हारा नाम क्या है। उसने अपना नाम जमुना बताया वह नारायणपुर गांव की है उसका विवाह जगतपुर गांव में हुआ और वह अपने पति के साथ अपने ससुराल जाने के लिए बस अड्डे पर आयी थी। उसका पति कुछ खाने का सामान लेने के लिए उसे यहाँ बिठाकर गया था। इतने में ही एक पुलिस वाले ने उसके पति को पकड़ लिया और उसे थाने ले गए।
मैं वापस मुड़ा। थाने में मुझे पुनः आया देख थानेदार बोल पड़ा सर, कुछ काम रह गया क्या। मैंने सीधे सवाल किया ये कौन है इसे क्यों बंद किया है। थानेदार के बोलने से पहले उसकी रुलाई फूट पड़ी।
’साहब, मेरा नाम नरेश है। बाहर मेरी पत्नी जमुना है। पुलिसवालों ने मुझे जबरदस्ती पकड़ लिया। मैंने लाख समझाया मेरी शादी हुई है पत्नी को घर ले जा रहा हूं। पर कोई सुनता ही नहीं।’
मैंने थाने के बाहर निकल कर उस महिला की ओर देखते हुए आवाज लगाई। जमुना झट से उठ खड़ी हुई।
’तुम्हारे पति का नाम क्या है ?’
उसने बताया ’हम पति का नाम नहीं लेते।’
’अच्छा!’ मैंने उसके पति का नाम पहले ही पूछ रखा था। मैंने पूछा ’ये कौन है।’ उसने कहा ’मेरा पति।’
मैंने थानेदार से पूछा ’इसे पकड़कर क्यों रखा है।’
मुंशी जी ने तत्काल जबान खोली ’यह आदमी सुबह संदिग्ध अवस्था में इधर-उधर घूमता पाया गया। एक चाय की दुकान का दरवाजा खुला था। उसमें घुसने की कोशिश कर रहा था। मुझे संदेह हुआ और मैंने इसे पकड़ लिया। थाने में ले आया।’
मैंने उस चाय वाले की दुकान के आदमी को बुलवाया उससे पूछा तो उसने बताया कि ’यह आदमी मेरे पास आया था। और सुबह उसे चार समोसे और दो चाय चाहिए थी। मुझे पैसे भी दे रहा था। इसी बीच पुलिस ने पकड़ लिया और थाने ले गए।’
मैंने थानेदार से कहा कि ’यह तो निर्दोष मालूम होता है। इस पर तो कोई मामला भी नहीं बनता।’
मुंशी जी बोले ’इसकी गतिविधियां संदिग्ध थी। मैंने सोचा दफा एक सौ नौ का यह बिल्कुल बढ़िया केस है। मेरा टारगेट भी पूरा नहीं हो रहा था इसलिए मैंने धर दबोचा।’
थानेदार से कहा ’मैं मौजूद हूं, आप मेरे सामने मामला पेश करें। मैं इसे तत्काल छोड़ने का आदेश करता हूं।’
भरी आँखों से जमुना अपने पति के साथ गाड़ी में बैठ गयी जो अपने पीछे ढेर सारा गर्द गुबार छोड़ गयी।

त्रिलोक महावर