लघुकथा-महेश राजा

स्मृति शेष

आज क्रिसमस का पवित्र त्यौहार था। चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी। राज सुबह सबको विश कर चुपचाप अपने स्टडी रूम में बैठा था। उनका मन कहीं न लग रहा था।
यादों के पिटारे से एक नाम उभर कर आ रहा था स्मृतिजी का! स्मृति जी उनके कार्यकालीन दिनों की विशिष्ट सहयोगी। अपने कार्य में माहिर। दोनों की कार्य क्षमता से विभाग को खूब लाभ मिला था।
क्रिसमस के दूसरे दिन स्मृतिजी अपने हाथों से एगविहीन केक और नमकीन लाती थी। सब साथ मिलकर एन्जॉय करते। केक के उस टुकड़े की खुशबू आज भी उनके जेहन में बसी हुई है।
राज उदास है, तीन बरस हो गये उन्हें सेवानिवृत्त हुए। तीन साल से तरस गये, वह उस नेह भरे केक के लिये। अब तो महामारी का दौर है। शहर जाना भी नहीं हो रहा है।
राज सोच रहे थे। प्रभु यीशु अगले बरस सब ठीक कर दे और उन्हें स्मृति जी के हाथों से बने केक नसीब हो। उन्होंने क्रास कर हाथ जोड़े।
और……
आमीन कहा।

महेश राजा
महासमुंद।छत्तीसगढ़।
9425201544