काव्य-दिनेश विश्वकर्मा

बेटी का ब्याह


गरीब पिता के लिए
होता है जीवन भर का स्वप्न
कई बार देखा इसके लिए
खेत बिकते, खलिहान बिकते
कई बार, खुद के अरमान बिकते।
क्योंकि पुत्री के रूप में
जन्म लेती है लक्ष्मी
कुंती का रहस्य, द्रौपदी का प्रतिशोध
सीता की पतिव्रता सती का हठ
शबरी की प्रतिक्षा, मीरा का समर्पण
जिनकी साधना में देखा
कई बार भगवान बिकते।
बेटियां जैसे सांस की डोर
जीवन के तम में, आशा की भोर
रसोई की रौनक, हंसता आंगन
कुटुम्ब की अस्मिता
इसलिए तो विदाई में
अनंत अश्रुओं की बूंद से भी
ऋण चुकाया नहीं जाता
जाने क्यूं, इस युग में सहज है
पर देखा नहीं जाता….
आधुनिकता के नाम पर
‘नारी’ का सम्मान बिकते।

ग़ज़ल

गोलियां अब भी चलती हैं, देर सबेर इस गांव में
उम्मीद कभी पार नहीं उतरती, छेद रह जाती नाव में।।
धोखे ही धोखे हासिल, आदिवासी भोले-भालों को
वादे ही वादे शामिल, अब के बरस चुनाव में।।
जाने क्या रंज लेकर घूमते, जंगल, घाटी, नदी, पर्वत
जाने कौन नमक छिड़कता है, उनके ताजे घाव में।।
सजे-धजे चेहरों ने दिखाया, गेड़ी, ककसाड़, गौर नृत्य
दुनिया ये भी देख पाती के, छाले पड़े थे पांव में।।
हमारे हित के नाम पर, कोरे कागज कारे भये
खेल ऐसा खेला गया, हम ही लगे थे दांव में।।
कोदो-कुटकी, सल्फी, मंडिया, बस इतना ही जीवन है
रक्तिम धरा हमारी क्यों, नील गगन की छांव में।।

ग़ज़ल

मेहनत-मजूरी की अंतहीन लड़ाई में
आमदनी उलझ गई सैकड़ा-दहाई में।।
कांधे तक उफनती नदी को पार कर
मरीज़ ढो कर लाते हैं चारपाई में।।
सल्फी का पेड़ बेटे को विरासत में
पॉलिश लगे जेवर, बेटी की विदाई में।।
दर्द है रोज का, जो पी जाती है जर्रा-जर्रा
मर्ज जो होता कोई राहत पा जाता दवाई में।।
आपने बढ़ा लिए, पगार किस्म-किस्म के
जाने कैसे हम जिए, हंस खेल कर मंहगाई में।

दिनेश विश्वकर्मा
कोण्डागांव
जिला-कोण्डागांव
छ.ग.
मो.-8463852536