अंक-3-कविता कैसे बदले तेरा रूप

कविता का रूप कैसे बदलता है देखें जरा। नये रचनाकार ने लिखा था, नवीन प्रयास था इसलिए कसौटी पर खरा नहीं उतरा। उसी कविता को कैसे कसौटी पर खरा उतारें-
सीमेन्ट, रेत-गिट्टी से बना
या फिर मिट्टी गारे से बना
ये ढांचा घर तो नहीं।
जहां बिस्तर पड़े हैं
और जहां आलमारियों में कपड़े हैं
ये ढांचा घर तो नहीं।
जहां लोग रहते हैं
खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं
ये ढांचा घर तो नहीं।
रंगा-पुता, चमक रहा
दीवार, आंगन में बंटा
ये ढांचा घर तो नहीं।

यही कविता कुछ अन्य पंक्तियां जोड़ने
पर देखें कैसे रूप बदलकर रोमांचित
करती है-
सीमेन्ट, रेत-गिट्टी से बना
या फिर मिट्टी गारे से बना
ये ढांचा घर तो नहीं।
जहां बिस्तर पड़े हैं
जहां आलमारियों में कपड़े हैं
ये ढांचा घर तो नहीं।
जहां लोग रहते हैं
खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं
ये ढांचा घर तो नहीं।
रंगा-पुता, चमक रहा
दीवार, आंगन में बंटा
ये ढांचा घर तो नहीं।
जब घर का कोई
बाहर चला जाता है,
रोती हैं दीवारें
रोती है घर की हवा
तब वो ढांचा
बन जाता है
घर!!