लाला जगदलपुरी संस्मरण- सुरेश चितेरा

काव्यः लालाजी की याद में

लाला जी के याद में

वे कवि थे, लाला जी थे, जगदलपुरी थे ।
किरणों जैसी चपल, उज्जवल,
धवल उनके सिर के बाल
कामगार सी थकी, झुकी, गहरी उनकी ऑंखें
शब्दों में, भाषा में, रूप में, धूप में वे थे
वे चलते, सोचते, लिखते, बोलते
दीन दुखियों में विचरते
उनके पैरों के पोर पोर में
धूल कण चिपके रहे अन्त तक
भावों का अथाह जल था उनके भीतर
उनकी कवितायें हल्बी, छत्तीसगढ़ी, भतरी, हिन्दी में
छन्द में बन्द में, महलों में, कोठरियों में,
नदी नालों व जंगलों में
सब जगह
वे इस वनांचल के स्थापित कवि थे
सब अपना सौंप देते थे
वे जैसे पेड़ आम का इस पृथ्वी पर
फल देते थे मुरझाए भी रहे
कई दिनों तक जाने से पूर्व
दुख-सुख, अपमान-मान सब सहे
चल दिए एक दिन कहते हुए
और क्या चाहिये मुझे
सोचता हूं
उनके सर का सुनहरा सजीव उजला बाल
रह तो नहीं गया
यहॉं फहराता हुआ।

सुरेश विश्वकर्मा ‘चितेरा’
ईसाई कब्रीस्तान के सामने, फ्रेजरपुर, जगदलपुर छ.ग.
मो.-09424293971