सुमय्या काशिफ की कवितायेँ

मां

देख रही हूं सपनों में जिसे
अपने ख्वाबों ख्यालों में जिसे
सोच रही हूं और पूछ रही हूं ईश्वर से,
ये मां कैसी होती है?
मेरी तड़प देखकर….ईश्वर ने दिया जवाब,
जिसकी कोख से मानवता जन्मे…..
जिसकी गोद में सृष्टि समा जाये……
जिसका स्पर्श बड़ी से बड़ी चोट को
सहलाकर ठीक कर दे…..
जिसका प्यार बड़े से बड़े सदमे से उबार दे….
जिसके द्वारा जिन्दगी संवरे
जो बच्चों को दुःख को ज्ञात कर ले…..
जो मन की आंखों से बच्चों को देख सके
दूर बैठ कर भी उन्हें दुआ दे सके
नाजुक हो पर मुश्किल में काम आये….
जिसके आंचल के तले,
हम खुद को सुरक्षित महसूस करें….
जिसकी आंखों में,
हम बच्चों के लिए प्यार ही प्यार हो….
जिसके आंसूओं में,
हम अपनी सारी गलतियां धो बैठें….
जिसका ममता भरा हाथ,
सर पर फिरते ही सुकून की नींद आये…..
गढ़ रही हूं, मैं मां को,
अपने लफ्ज़ों में, जिसे देवी का रूप दे इंसान।
ठेस तो बहुत पहुंचाई है
उस देवी को मैंने….
पर क्या आज भी उठता होगा,
उसका हाथ मुझे आर्शिवाद देने को?
क्या मांगती होगी आज भी वो,
दुआ मेरी सलामती को?
पूछ रही हूं ईश्वर से,
एक बार मिला दे मुझे मेरी मां से….
फिर शायद कोई तमन्ना नहीं बाकी,
जीवन जीने की

सुमय्या काशिफ
वैशाली नगर
नागपुर (महाराष्ट्र)
मो-09049310771