प्रो.भगवानदास जैन की ग़जल

ग़ज़ल

यूं तो हरेक शख़्स की तक़दीर है जुदा।
आंसू सभी के एक-से पर पीर है जुदा।
हो बंन्दगी या शाइरी या मयकशी जनाब,
ख़्वाबो के साथ जीने की तदबीर है जुदा।
आज़ाद कौन है यहां हर सांस है कैद,
हां, सिर्फ़ इतना फ़र्क है जंजीर है जुदा।
गिरगिट-सा रंग लोग बदलते हैं आजकल,
भीतर फ़रेब बाहरी तसवीर है जुदा।
गीता हो या कुरान या इंजील हो मगर
इल्हाम सबका एक है तहरीर है जुदा।
मतलबपरस्त आज हैं सब हुक्मरान हैं,
अभिनय सभी के एक-से तक़रीर है जुदा।
शाहेजहां का ताज या मुफ़लिस की झोपड़ी,
है अल्ग़रज़ तो ख़ाक ही तामीर है जुदा।
गुज़रे दिनों की याद में आहें भरें न आप,
हर उम्र, वक़्त, दौर की तासीर है जुदा।

प्रो.भगवानदास जैन
पूर्व अध्यापक, हिन्दी विभाग
बी-105, मंगलतीर्थ पार्क, कैनाल के पास, जशोदानगर रोड, मणीनगर (पूर्व) अहमदाबाद-382445
मो.-09426016862