अजब कहानी
कहीं होंठो पे हंसी, कहीं आंखों में पानी है
कुदरत ने ही लिखी, कर्मो की कहानी है…
कभी अपने पराये, कभी गैर भी अपने से लगते
कोई समझ न पाये, कुछ हकीकत, कुछ सपने लगते
दिखती है रीत वही, पर प्रीत तो पुरानी है…
बीज कहीं पर नष्ट हुआ, मगर कहीं पे फूल खिला
कहीं किसी को कष्ट हुआ, किसी को सुख भरपूर मिला
क्या गलत, क्या सही, दुनिया इससे अनजानी है…
कोई मिल गये किसी से, कोई मिलकर भी हैं बिछड़े
कहीं कली खिली खुशी से, कहीं बाग के बाग हैं उजड़े
मंजिल हमको कहां दिखी, मिट्टी पर आज जवानी है…
कभी पकड़ लिया, कभी सहज सबकुछ छोड़ दिया
सभी ने मना किया, क्यों ईश्वर से नाता तोड़ लिया
मौत तो सस्ती बिकी, मगर मंहगी हुई जिन्दगानी है…
दौर जो तुमने दिया, कभी इससे गुजर कर देखो
कष्टमय जीवन जिया, जरा मझधार में उतरकर देखो
घड़ी न बाकी बची, लो मिट्टी अब नाम निशानी है…
रामचरण यादव ‘याददाश्त’
प्रधान सम्पादक-‘नाजनीन’
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