कीर्ति श्रीवास्तव की कवितायेँ

खिल उठा जीवन
मेरे अंगना आई गौरेया
देख मेरा उपवन
मन मेरा खिल उठा
देख उसका चितवन।
छोटे-छोटे पांव हैं उसके
छोटी-छोटी आंखें,
दाना चुगती चोंच से अपनी
मुंह वो मटकाती,
उसकी इस मासूम छवि से
खिल उठा जीवन।
बारिश को न्यौता वो देती
जब भी धूल नहाती,
ऋतु के आते ही वो
घोंसला अपना बनाती,

उसके गुनगुनाने से

चहक उठता मधुवन।दूर जाने का फैसला कर लिया
आज जो ग़म को भुलाने का फैसला कर लिया,
सांसों ने भी दूर जाने का फैसला कर लिया।
हमसे नाराज़ रहने की जिद छोड़ दे तू,
हमने तुझको पाने का फैसला कर लिया।
बदली में छिपते चांद, सितारों को देखो,
खुद को सूरज की तपिश में तपाने का फैसला कर लिया।
ज़ख़्मी परिन्दे की उड़ान देखकर हमने
नई उम्मीदों को जगाने का फैसला कर लिया।
जीवन में जब छाने लगा घना अंधेरा,
सभी को चिराग दिखाने का फैसला कर लिया।
तेरे ख्वाबों में ख़ुद को देखने की खातिर,
तेरी पलकों से नींद चुराने का फैसला कर लिया।
तेरे इंतजार में मैयत सजा ली अब तो,
प्यार के परिन्दों को उड़ाने का फैसला कर लिया।

कीर्ति श्रीवास्तव
242,सर्वधर्म कालोनी,
सी-सेक्टर
कोलार रोड,
भोपाल (म.प्र.)-462042
सम्पादक
साहित्य समीर दस्तक