लाला जगदलपुरी-संस्मरण-लक्ष्मीनारायण पयोधि

दण्डकारण्य का दाण्ड्ायण : लाला जगदलपुरी

रायपुर से पढ़ाई खत्म करके भोपालपटनम् लौटा तो साहित्य-जगत् में कुछ पग-चिह्न बन चुके थे। भोपालपटनम् में तो साहित्य का कोई माहौल था नहीं, लेकिन बस्तर में साहित्य मनीषी के रूप में एक जो छवि मेरे मन में थी, वह केवल लाला जगदलपुरी की ही थी। रायपुर में मैं नियमित रूप से ब्राह्मणपारा स्थित नगर निगम के वाचनालय जाया करता था। वहाँ विशेष रूप से दैनिक समाचार पत्रों के रविवारीय परिशिष्टों में यदा-कदा लालाजी की कविताएँ और बस्तर की संस्कृति पर केन्द्रित शोधपरक लेख पढ़ने को मिल जाया करते थे। इनके माध्यम से ही मैं लालाजी से परिचित हो सका था।
भोपालपटनम् वापसी के बाद एक बार मैंने नयी कविता पर केन्द्रित परिचर्चा के लिये लालाजी को एक पत्र लिखा। व्यक्तिगत परिचय न होने के बावजूद एक सप्ताह के भीतर ही लालाजी के विचार डाक से प्राप्त हो गये। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। उसके बाद उनसे पत्र व्यवहार कई प्रसंगों में हुआ। उनका आत्मीय व्यवहार मेरे जैसे नवोदित के लिये प्रोत्साहनकारी था। 1981 में मैं जगदलपुर गया। यद्यपि 1972 से 1975 तक बस्तर हाईस्कूल में पढ़ाई के वक्त मैं जगदलपुर में ही रहा, परंतु उस समय साहित्य-लेखन से मेरा कोई संबंध नहीं था, इसलिये साहित्य से जुड़े लोगों के प्रति न तो मेरा कोई आकर्षण था और न ही उनके बारे में जानने की जिज्ञासा। यही कारण रहा कि मैं जगदलपुर में रहते हुये भी लालाजी से तब परिचित नहीं था। दोबारा जगदलपुर आने से पहले पत्रों के माध्यम से हम दोनों के बीच एक रिश्ता बन चुका था। इसलिये जब मैं डोकरीघाट पारा स्थित उनके निवास पर पहली बार उनसे मिला तो कोई अपरिचय का भाव हम दोनों के मन में नहीं था। वे मुझसे पिता की तरह मिले।
मैं एक साल जगदलपुर में रहकर फिर भोपालपटनम् लौट गया। लेकिन इस अवधि में लालाजी से रिश्ता अत्यन्त प्रगाढ़ हो चुका था। लालाजी रोज शाम को नियमित रूप से टहलने निकलते थे। जगदलपुर में रहते हुए मैं भी उनकी इस दिनचर्या में सहभागी हो गया था। हम दोनों विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हुए किसी एक दिशा में निकल पड़ते थे। ऐसी चर्चाओं के बीच गुण्डाधूर पर केन्द्रित नाट्य-लेखन की योजना बनी। भोपालपटनम् में मैंने यह नाटक पूरा किया। वहाँ जाकर मैंने गाँव में साहित्य और संस्कृति के लिये आधार भूमि तैयार करने का कार्य शुरू किया। कुछ मित्रों को जोड़कर ‘‘पल्लव साहित्य समिति’’ गठित की। उसके माध्यम से एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया। म