बस्तर के लोक संस्कति मे लाला जगदलपुरी
बस्तर अपनी विशिष्ट संस्कृति के लिए विश्व के मानचित्र पर अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बस्तर में आने से पहले एक पर्यटक जो सोचता है, जरूरी नहीं की वह उसे यहां मिले। बस्तर के विषय लिखने -बोलने वालों में अधिकांश ऐसे लोग रहे जिन्होंने बस्तर को बाहरी चश्मे से देखा, एक पर्यटक की तरह चार दिन सैर -सपाटा किये, किसी रेस्ट हाउस के चौकीदार या किसी संभ्रात ग्रामीण से चर्चा कर महंगे कैमरे में कुछ आदिवासी जनजीवन संबंधी फोटो खींचकर राजधानी के रंगीन तथाकथित बड़े अखबारों व पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशन कर बस्तर के विशेषज्ञ होने का दावा करने लगे और आश्चर्य की बात यह भी है कि वे अपने इस कार्य को इतना महान साबित कर गये कि इस पर सम्मान व अवार्ड भी पा रहे हैं, तो कहीं शासकीय तौर पर बस्तर विशेषज्ञ व योजनाकार के तौर पर स्थापित भी हो रहे हैं।
लाला जी की साफगोई मेरे लिए एक प्रेरणा का विषय रही, वे साफ तौर पर साहित्यिक चोर
व चोरी से नफरत करते थे।वे रचनाधर्मिता से सारे हिंदुस्तान को आसानी से अपनी बात, बस्तर की बात कह लेते थे परंतु उन्हें आयोजनों से कम लगाव था इसलिए वे झूठे सम्मान व तारिफ से बचने की कोशिश करते थे।लाला जी ने अपने ग्रंथ ’बस्तरः इतिहास एवं संस्कृति‘ में बस्तर की समग्र लोक संस्कृति को समेट कर गागर में सागर भरने का काम किया है। बड़ी चतुराई से उन्होंने गं्रथ के लेखकीय में ‘मैं शास्त्रीय लेखन का धनी नहीं हूं।’ कहा है परंतु मेरी समझ में वे बस्तर की लोक संस्कृति को जीने वाले अध्येता रहे। बस्तर की लोक संस्कृति के विविध पक्षों के जानकार रहे, चाहे वह विवाह, जन्म, मत्यु या फिर नृत्य, गीत, नाट, रेला हो या फिर गोंचा, दशहरा, दियारी जैसे बस्तर के महापर्व; संस्कृति के समस्त पहलुओं पर प्रकाश डाला है। यहां लोक जीवन में विशिष्ट आदिवासी संस्कृति में उनके वस्त्र- आभूषण, रहन-सहन, रीति-रिवाज की विविधता वाले आयामों को हुबहू चित्रांकित किया है।यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि लाला जगदलपुरी स्वयं बस्तर के इतिहास पुरूष बन गये व उसका हिस्सा बनकर उसमें समा गये।
डॉ०रूपेन्द्र कवि
”कवि निवास“
ग्राम व पोस्ट-मालगॅाव
तहसील-बकावन्ड
जिला-बस्तर, छ.ग.
पिन-494221
मो.-09406200426