अंक-3-पाठकों की चौपाल

‘बस्तर पाति’ का सितम्बर अंक प्राप्त हुआ, हार्दिक धन्यवाद। सुदूर आदिवासी क्षेत्र से साहित्यिक प्रकाशन करना,तलवार की धार पर चलने के समान है। कविताएं, गज़लें, कहानियां दिल को छू लेने वाली हैं। प्रेमचंद की ’कफन’ और ‘कफन के बहाने’ देकर आपने अंक को प्रभावी बना दिया है। किसी लेखक का चित्र उपलब्ध न होने की स्थिति में खाली बॉक्स न देवें। शुभकामनाएं!
संतोष सुपेकर, 31, सुदामा नगर, उज्जैन(म.प्र.)
आदरणीय सुपेकर जी आपकी अमूल्य सलाह के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद। ‘बस्तर पाति’ हमेशा अपने पाठकों एवं लेखकों के सुझावों का स्वागत करती है।
संपादक बस्तर पाति

‘बस्तर पाति’ का अंक-2 प्राप्त हुआ। आभारी हूं। अंक मैंने बड़ी रूचि के साथ पढ़ा। अच्छा लगा। अपने सम्पादकीय एवं बहस आदि के माध्यम से आपने जो मुद्दे उठाये हैं, वे बड़े सटीक, सामायिक एवं सार्थक हैं। रचनायें पठनीय हैं। नये रचनाकारों को आगे लाने का आपका संकल्प प्रशंसनीय है। साहित्य एवं रचनात्मकता से विमुख होती जा रही नयी पीढ़ी की सोच में परिवर्तन लाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। बस्तर की प्राचीन संस्कृति को देश के पटल पर स्थापित करने के आपके प्रयास यशस्वी हों, यही शुभकामना है।
श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी, द्वीपान्तर, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग़, फतेहपुर, (उ.प्र.) फोन-05180222828
आदरणीय सम्पादक महोदय, प्रणाम,
आप द्वारा सम्पादित बस्तर पाति अपने अग्रज द्वारा पढ़ने मिली। सुदूर आदिवासी क्षेत्र से लोक संस्कृति को समर्पित यह पहली पत्रिका है जो साहित्यिक भी है। आपके पूरे पत्रिका परिवार को बधाईयां! पत्रिका का नाम, सम्पादन, संयोजन एवं रचनाएं सब बढ़िया हैं। साक्षात्कार, बहस नवहस्ताक्षर कॉलम जारी रखें। आपने बस्तर से एक पत्रिका का प्रकाशन कर बड़े ही उत्साह का काम किया है, आज पत्रिका प्रकाशन बहुत आसान नहीं है। इसकी निरंतरता बनाऐ रखें। वार्षिक या एक प्रति की भी सहयोग राशि रखें तो अच्छा होगा।
नदीम हसन चमन, द्वारा डॉ.मानो बाबू, रिकाबगंज, टिकारी, गया-824236 मो.-09852612119

आदरणीय नदीम जी, नमस्कार,
आपने पत्र के माध्यम से बस्तर पाति के सम्बंध में अपने विचार रखे, धन्यवाद। आपके सुझाव पर अमल किया जा रहा है। इस अंक के साथ वार्षिक सदस्यता की राशि भी प्रकाशित की जा रही है। आपके अमूल्य विचार एवं प्रतिक्रिया के लिए पुनः धन्यवाद।

सम्पादक बस्तर पाति

प्रिय बन्धु, दीर्घायु हों! स्वस्थ, मस्त, व्यस्त रहें। बस्तर पाति के दोनों प्रारंभिक अंक मिले। अंक-2 मेरे सामने है। आपकी हिम्मत की दाद देना चाहता हूं कि एक अहिन्दीभाषी, सुदूर आदिवासी क्षेत्र से हिन्दी की पत्रिका निकालकर आपने जीवटता का काम किया है। पत्रों एवं रचनाओं से लगा कि हिन्दी के अनेक कवि, लेखक आपसे जुड़ चुके हैं। प्रख्यात चित्रकार श्री नवल जायसवाल जी की पीड़ा अपनी जगह उचित है। अनायास ही जाने-अनजाने हम ही लोग मातृभाषा के शब्दों के साथ मज़ाक कर बैठते हैं। यह अवश्य रोका जाना चाहिए। बस्तर पाति फीचर्स के अंतर्गत ‘साहित्य का जमाना नहीं’ विचारोत्तेजक लेख है। काव्यपक्ष भी काफी मजबूत है। पत्रिका प्रकाशन और सम्पादन के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
ज्ञानेन्द्र साज, सम्पादक ‘जर्जर कश्ती’, 17/212 जयगंज, अलीगढ़-202001, मो.-09219562656

बंधुवर सनत जी सप्रेम नमस्कार
नागपुर में ऊषा अग्रवाल जी के यहां बस्तर पाति का प्रथम अंक देखा था, उसका आवरणपृष्ठ ही स्वयं बोल कर बता रहा था कि यह लोकजीवन-संस्कृति को प्रतिबिंबित करती पत्रिका है। अब आपके द्वारा प्रेषित द्वितीय अंक अभी विगत दिवस प्राप्त हुआ, पत्रिका खोलने से पहले ही इस बार भी आवरण पृष्ठ अंदर की कथावस्तु का आभास करा गया। आपकी कल्पनाशक्ति व प्रस्तुतिकरण प्रशंसनीय है, पत्रिका के माध्यम से आप विस्तृत रूप में बस्तर व उस क्षेत्र के अंतरंग पृष्ठ-जीवन शैली का परिचय संपूर्ण राष्ट्रिय परिदृश्य पर उजागर करने का सराहनीय प्रयास कर रहे हैं, यह हिन्दी ही नहीं राष्ट्र के विकास-समरसता की दिशा में किया गया सार्थक प्रयास है। इसके साथ ही संभव हो तो वहां की लोक भाषा के वनवासी बंधुओं द्वारा गाये जाने वाले गीत व उनका भावार्थ भी यदि प्रकाशित हो सके तो और भी अच्छा हो सकता है। मेरी शुभकामनाएं एवं पत्रिका प्रेषण हेतु आभार स्वीकारें।
डॉ. श्रीहरि वाणी, सम्पादक ‘वैश्य परिवार’ 92/143 संजय गांधी नगर, नौबस्ता, कानपुर-208021 मो.-09450144500

त्रैमासिक पत्रिका ‘बस्तरपाति’ का सि.-न. 2014 का अंक अवलोकनार्थ मिला। ये अंक विविधपूर्ण साहित्यिक सामग्रियों से सरोबार है। पत्रिका की साजसज्जा और रेखांकन सराहनीय है। भविष्य में प्रकाशित पत्रिका के अंकों में यात्रा संस्मरण, स्थल वर्णन, समीक्षाएं, विचारोत्तेजक लेख, लोक साहित्य संवर्धन और संरक्षण के प्रयासों का समावेश होगा। खासकर रूसी लेखन शैली ‘सॉनिट’ के रचनाकारों को प्रोत्साहन मिलेगा।
फाल्गुनी शुभकामनाओं सहित।
सी.एस.बेसेकर, सहायक निदेशक(कार्यक्रम), आकाशवाणी,नागपुर, महाराष्ट्र

बंधुवर सनत जी सप्रेम नमस्कार
अत्र कुशलं तत्रास्तु। सुदूर जगदलपुर से आपने सुसम्पादित त्रैमासिक पत्रिका ‘बस्तर पाति’ भेजी और इस नाचीज़ को याद किया-इसके लिए मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं। कोई पंद्रह बरस पहले एक बार जगदलपुर जाना हुआ था, आज बस्तर पाति को पढ़ते-पढ़ते अनेक सोई हुई स्मृतियां जाग उठीं। यकीनन इसका श्रेय आपको ही है।
पत्रिका वास्तव में बहुआयामी है। प्रस्तुत अंक में ‘पाठकों से रूबरू’ शीर्षक आपका सम्पादकीय, वर्तमान युग में वृद्वों/बुजुर्गो की दुर्दशा की सही व गंभीर पड़ताल करता है। श्रीमती मोहिनी ठाकुर से भी सनत जैन का साक्षात्कार संक्षिप्त, सार्थक व संतुलित है। श्री सनत जैन के एक प्रश्न के उत्तर में श्रीमती मोहिनी ठाकुर ने बस्तर की साहित्यिक स्थिति का जो परिचय दिया वह पाठकों की जानकारी में इजाफा करता है। जनाब रऊफ परवेज़ की ग़ज़लों का तो मैं मुरीद रहा हूं। यह बात मैंने एक ग़ज़लकार होने के नाते कही है। श्रीमती मोहिनीजी द्वारा प्रस्तुत चारों कविताएं भी बड़ी संवेघ हैं।
अंकस्थ कविताएं और ग़ज़लें भी मुझे बड़ी प्यारी लगीं। लघुकथाएं भी काफी व्यंजक और चुटीली हैं। विशेषतः डॉ. अशफॉक की लघुकथाएं क़ाबिलेतारीफ हैं। जैन करेलवी का मोबाइल पुराण दिलचस्प है। जनाब नसीम आलम नारवी की ग़ज़लें पुरअसर हैं नव हस्ताक्षर कु. अंजली सिन्हा में हमें भावी संभावनाएं नज़र आती हैं। बस्तर पाति पढ़ने के बाद यह कहने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं है कि निस्संदेह पत्रिका सुदूर आदिवासी क्षेत्र की लोक संस्कृति एवं आधुनिक साहित्य का एक स्वच्छ दर्पण है। आपका प्रयास श्रमसाध्य एवं सन्निष्ठ सम्पादकत्व, अशेष मंगलकामनाओं एवं बधाईयों का हकदार है। इत्यम! शुभमस्तु!
डॉ. भगवानदास जैन, बी.-105 मंगलतीर्थ पार्क, केनाल के पास, जशोदानगर रोड, मणीनगर(पूर्व) अहमदाबाद-382445 मो.-09426016862

‘बस्तर पाति’ त्रैमासिक पत्रिका में नवोदित रचनाकारों को प्रकाशन में प्राथमिकता देना सम्पादक श्री सनत जैन जी की उच्चप्रेरणा है तथा ‘अरण्यधारा-1’ कविता संकलन बस्तर पाति का अनूठा प्रयास है। सम्पादक द्वय को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं जिन्होंने ‘अरण्यधारा-1‘ में बस्तर क्षेत्र के साहित्यकारों का काव्य संकलन प्रकाशित कर सुदूर बस्तर को गौरवान्वित हुआ है, साथ ही समूचा छत्तीसगढ़ राज्य भी अछूता नहीं है।
अरण्यधारा-1 में श्री विमल तिवारी जी की पांच रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। श्री तिवारी जी की रचना ‘पर्वत गुनगुनाने लगे’ में पावस ऋतु का सजीव चित्रण है। ‘बूंदों की टप-टप ने नयी धुन निकाली, पर्वत भी संग-संग गीत गुनगुनाया’ पंक्तियों में मानवीकरण अत्यंत मनोहारी है।
दूसरी रचना ‘आंसू भेया के’ में कवि ने अतीत के मर्मान्तक क्षणों को कविता मे उकेरा है। कवि ने जो भोगा, जैसा जीवन जिया उसकी स्मृति ही रह गई है जो पीड़ा देती है। अंतर्पीड़ा को देखिए-व्यर्थ दुःख से घिरा हूं, ममता का श्रोत नहीं मिला।/ मंजिल लंबी है अपनत्व की, अपनेपन का आभास मुझे नहीं।’
‘जीने की तमन्ना’ समसामायिक यथार्थ के धरातल पर लिखी गई रचना है। प्रेम और सहयोग की सीख का क्रूर, निर्मम व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा वरन् जख्म और दर्द मिला। इसलिए कवि ने जीने की आस छोड़ने की बात कही है।
‘बस्तर की चांदनी’ रचना में कवि ने बस्तर की सुन्दरी को नई पहचान दी है। ‘पूनम चन्दा बस्तरी के माथे की बिन्दी… इस सौन्दर्य से अभिभूत हम बस्तर से विलग कैसे हों। बस्तर के प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा अद्भुत है।
‘इन्द्रावती’ कविता में श्री तिवारी जी ने बस्तर के पशु-पक्षी, मानव के लिए इन्द्रावती नदी को वरदान चित्रित किया है। इन्द्रावती नदी की धारा से समस्त खग-विहंग, पशु, प्रकृति और मानव का जीवन सार्थक एवं धन्य हो गया है।
अंत में मैं श्री विमल तिवारी को धन्यवाद, बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं कि वे सदैव पाठकों के लिए इसी प्रकार श्रेष्ठ रचनाएं लिखते रहें।
राजा बाबू तिवारी, से.नि.प्राचार्य, आयुष निवास, श्रीराम टाकिज के सामने, महासमुन्द, छ.ग. मो.-09770952510

सम्पादक महोदय, बहुत अच्छा लगा, लगातार प्रकाशन का कार्य करने के लिए आप बधाई के पात्र हैं। पत्रिका को वैचारिक सहयोग अपने एक स्लोगन के साथ रखना चाहता हूं क्योंकि यह समाज को खोखला करता जा रहा है।
-मौत का सामान, पान, गुटखा शराब, सिगरेट हम खरीद कर खाते हैं समाचार पत्र एवं पत्रिकायें क्यों मुफ्त में चाहते हैं।’ बस्तर पाति द्वारा जनहित में जारी….
उपरोक्त विज्ञापन आप अपनी पत्रिका में प्रकाशित करें ताकि सोशल फील्ड में जो काम कर रहे लोग भी पत्रिका से जुड़ें। इस विज्ञापन का फ्लैक्स भी आप लगवा सकते हैं क्योंकि इस नशे से न केवल निम्न अशिक्षित वर्ग बल्कि पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका भी गिरफ्त में है। हम बस्तर पाति के मंच से इसकी पहल कर सकते हैं। जन सरोकार के प्रश्नों पर एक सार्थक मंच देना भी हमारा काम होना चाहिए।
शिशिर द्विवेदी 257 रामबाग, बस्ती (उ.प्र.) मो.-09451670475