लघुकथा-पूर्णिमा सरोज

बेबस पार्क में कहीं बच्चे अपने माता-पिता की उंगली थामें खुशी से यहां-वहां देख रहे हैं।…

पूर्णिमा सरोज की कवितायेँ

आमंत्रण आओ मैं तुम्हें, अपने मौन भाषण में बस, एक बार, तुम मेरे जख़्मों की गहराई…