काव्य-श्यामनारायण श्रीवास्तव

श्यामनारायण श्रीवास्तव की दो कविताएं

साक्षात्कार

मात्र एक देश नहीं
सम्पूर्ण धरा पर
कहीं भी आना
प्राकृतिक आपदा का
दुःख पूर्ण घटना है
अचानक जल प्रवाह का बढ़ना
भयानक तूफान का उठना
भूकंप से धरती का फटना
छोटी सी चिन्गारी का
भयंकर लपटों में बदलना
जहरीली गैस का फैलना
हो सकती है कहीं भी
इस तरह की दर्दनाक घटना
कारण कुछ भी हो
मानव द्वारा प्रकृति का दोहन
या कुछ और…….
किन्तु कभी-कभी
प्रतीत होता है कुछ ऐसा
जहां मनुष्यता नहीं रही शेष
जहां मृत हो गई है संवेदना
इस विशाल प्राकृतिक आपदा में भी
जहां चुनाव की चिन्ता में जारी है
पक्ष-विपक्ष की नोंक-झोंक
बचाव या राहत सहयोग में
राजनीति का षडयंत्र
जहां जारी है बाजार तंत्र
पांच सौ रूपये में बिस्किट का छोटा पैकेट
बिक रही है सौ रूपये में पानी की एक बोतल
जहां लाशों से झपटे जा रहे हैं आभूषण
बाप रे! दर्दनाक ही नहीं
बहुत शर्मनाक है
यदि ऐसी ही सोच रही तो
क्षमा नहीं करेंगी वे मृत आत्मायें
पीड़ित परिवार की आह
सच है देखना ऐसे में तो
बह जायेंगे और भी
न जाने कितने केदारनाथ…….

जड़ें

उन्होंने पहले
कुल्हाड़ी से काटी
मेरी भुजायें
फिर आरी चलाकर
मेरे शरीर के
किये कई खण्ड
गिरा दिया धरती पर
बहुत चीखा-चिल्लाया मैं
बहरे थे वे
नहीं सुन सके
मेरी दर्द भरी चीख
समझ नहीं सका था मैं भी
उनकी चाल
किन्तु वे काट नहीं सके
मेरी जड़ें
कोई भी मार नहीं सकता मुझे
मिटा नहीं सकता मेंरे अस्तित्व को
कि जब तक जीवित है मेरी जड़ें
वे चाहे किसी वृक्ष की हों
संस्कृति की हों
सभ्यता की हों
याकि विरासत में मिली
मेरी परम्परा की हों
वैसे भी अब मैं धीरे-धीरे
समझने लगा हूं उनकी चाल
उसकी नियति भी
देखना अब वे नहीं काट सकेंगे
मेरी भुजाओं को भी
और उनके लिए बहुत बड़ी
चुनौती होगी
भुजाओं को काटना तो दूर
वहां तक पहुंचना भी.

श्याम नारायण श्रीवास्तव
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