लघुकथा-भरत गंगादित्य

उच्च शिक्षित


‘‘पिताजी! लीजिए दूध।’’
उसने चौक कर देखा, उसका लड़का दूध लेकर सामने खड़ा था। बुढ़ापे में अब शरीर में पहले जैसी ताकत नहीं रही। उसने कांपते हाथों से दूध लिया। फिर तबीयत का हालचाल पूछकर बेटा चला गया। वह सोचने लगा कि ये यही बेटा है जिसे मंदबुद्धि समझकर उसने
बचपन में न जाने कितने ताने मारे थे। और बड़े बेटे के अच्छे दिमाग के चलते उसे शाबासी दिया था।
आज बड़ा बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ महानगर में बड़ी नौकरी पाकर अपनी जिन्दगी बसर कर रहा है। आज उसे अपने पिता की सुध ही नहीं है। और छोटा बेटा जो केवल इंटर तक ले देकर पढ़ाई करके घर की डेयरी को संभाल रहा है। पूरे घर का खर्च चला रहा है। पत्नी के देहांत के बाद भी उसे बच्चों के कारण कमी नहीं खल रही।
‘‘दादाजी! अस्पताल जाना है, पापा ने तैयार होने को कहा है।’’ पोते ने दस्तक दी। मन में संतुष्टि भरे ढेर सारे आशीष उड़ेलता हुआ वह तैयार होने लगा।


भरत गंगादित्य
द्वारा-श्री बलबीरसिंह कच्छ
आकाशवाणी केन्द्र जगदलपुर-494001
मो.-9479156705