बालकृष्ण गुप्ता-गुरु-लघुकथाएं

तुलना

मोटे साहब ने माली के डेढ़ वर्षीय बेटे तो सोते हुए कुत्ते के पिल्ले की रोटी की प्लेट की तरफ बढ़ता देखकर रोटी उठा ली। पंजे के बल खड़ा होकर, हाथ बढ़ाकर बच्चा रोटी को अपनी पहुंच से कुछ ऊंचा देखता रहा। मोटे साहब ने रोटी बच्चे की पीठ की तरफ फेंक दी। बच्चा घूमा और रोटी तक पहुंच पाता, साहब ने रोटी को उठाकर दूर फेंक दिया। वह छोटे-छोटे टुकड़े भी उछालता। इस तरह रोटी के कई टुकड़े इधर-उधर बिखरते गए। आखिरकार, मोटा साहब ऐसा थकते तक करता रहा। पिल्ले की नींद खुली और वह मोटे साहब के हाथ में पकड़े बड़े टुकड़े को झपटकर खाने लगा। बच्चे को खुशी-खुशी जमीन पर बिखेर रोटी के टुकड़ों को खाते देख मोटा साहब बोला, ‘स्साला, माली का पिल्ला। खूब छकाया कुत्ते के पिल्ले को ऐसा करता, तो काट खाता।’

सुबह का सपना

उसने देखा, प्लेट पूरी तरह भरी हुई थी। चमचम, गुलाबजामुन के साथ पकौडे और कचौरियां भी। पुलाव था और रायता भी। उसने पेट भर खाया, फिर प्लेट सामने खेलते बच्चों के सामने रख दी। पलभर में वह साफ हो गई। अचानक उसकी नींद खुल गई। पर सपना याद रहा। मों का चेहरा अपनी ओर घुमाते हुए उसने कहां, ‘मां, भूख लगी है।’
पर मां चेहरा ढंककर सो गई। उनके चेहरे से चादर हटाते हुए वह बोला, ‘सचमुच बहुत जोर की भूख लगी है।’
मां ने एक चांटा उसके गाल पर लगाते हुए कहा, ‘सुबह-सुबह तो सोने दे।’ इस बार उसने पूरी चादर खींच दी और चिल्लाया, ‘मां, बहुत भूख लगी हैं, कुछ भी खाने को दो।’
मां ने उसके दूसरे गाल पर चांटा रसीद करते हुए कहा, ‘ले, अब जा तू भी सो और मुझे भी सोने
दे। भूख के कारण रातभर नींद नहीं आई….।’


बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरू’
डॉ.बख्शी मार्ग, खैरागढ़
मो.-09424111454