बिटिया रानी
ठुमक-ठुमक कर पाँव पटकती,
पल-पल में है रंग बदलती.
दादी को दिन-रात छकाती,
बाबाजी को देख मचलती.
ढँग-बेढंगे खेल दिखाती,
सर्कस की जोकर बन जाती.
मुझको कहती पुप्पा-पुप्पा,
पकडँ़ू, देखो हाथ न आती.
इसकी बातें ये ही जाने,
कहूँ अगर कुछ बात न माने.
भैया सँग शैतानी करती,
हाथ मलें सब बड़े सयाने.
मम्मी तो बेसुध ही रहती,
सारे नखरे इसके सहती.
ताऊ-ताई की भी प्यारी,
नेहधार गंगा-सी बहती.
नयी सहेली रिम्मी-पिम्मी,
के बिन भोजन कभी न करती.
रोज़ माँगती नये खिलौने,
केवल पापा से है डरती.
रात हो गयी, बिटिया रानी,
अपनी मम्मा के संग सोयी.
लिये हाथ में टैडी छोटा,
सुन्दर स्वप्नलोक में खोयी.
डॉ. शैलेश गुप्त ‘वीर’
अध्यक्ष- अन्वेशी संस्था
24/18, राधानगर,
फतेहपुर (उ.प्र.) – 212601
वार्तासूत्र- 9839942005, 8574006355