प्रभाती मिंज की कविताएं

आसमान 

लहरा दो परचम आसमान में
करो हस्ताक्षर अब आसमान में।
लिख लो तकदीर अपने हाथों पर
तोड़ दो बेड़ियाँ अपने मान में।
मुठ्ठी में कर लो आसमान तुम
जन्नत हासिल हो तेरे अरमान में।
रहे सलामत तेरी जीवन बगिया
सुख का शंखनाद हो तेरे शान में।।

रात

रात, बात, बिसात
ये तो है
चाँदनी की सौगात ।
रातों की स्याही
अब क्या
उदास कर पायेगी हमें
जहन्नुम भी मिल जाए तो
मुस्कुराने का वादा
किया है हमने ।।

सुबह

सुबह की लाली
धरती की हरियाली
पुष्प क्यारियों में गुनगुनाती अलि-आली
पैग़ाम दे रही
बीत गयी रात की अंधियारी काली
खिल गया आसमान ।

चिड़ियों की चहचहाहट
वातावरण की गरमाहट
दबे पाँव बारिश की सुगबुगाहट
राह सजा रही
ताकि हो जाये सफ़र सुहाना
मुकम्मल हो मेरा-तेरा मिलने का बहाना।।

सागर

मैंने पूछा झरने से-
“क्या तेरी चाह नहीं कि
तू भी सागर-सा विशाल हो जाये“
मुस्कुरा कर झरने ने कहा-
“नहीं , ऐसी मेरी कोई चाह नहीं
कि समाकर सागर में
खारा हो जाऊँ
मै यहाँ छोटा, मगर मीठा तो हूँ“

आत्मविश्वास

पेड़ पर
एक घायल परिन्दा
फुदक-फुदक
फिर रहा
डाल-डाल पर
चोटिल पैर जब देता नहीं साथ
वह चोंच के सहारे
लटका रहता
टहनियों पर।
यह देख साथी परिन्दे
आ जाते सहारा देने
मगर, घायल परिन्दा डटा रहता
शायद भरोसा है उसे
अपने डैनों पर
विश्वास है नुकीले चोंच पर
उसकी आत्मविश्वास
उसे हौसला देती
घायल होने के बावज़ूद
वह फुदकता
चहचहाता
जीता जीवन
अपने बलबूते पर

प्रभाती मिंज
बिलासपुर, छ.ग.
मो-9826084197