काव्य-वंदना राठौर

बनारसी साड़ी-पहला प्यार


पुराने संदूक में
पुराने छायाचित्रों, चूड़ियों, गुड़ियाओं
ग्रीटिंग कार्डों, फ्राकों के नीचे
एक पुरानी चादर में लिपटी
रखी होती है
भारी भरकम ज़री कामवाली
‘बनारसी साड़ी’
हर किसी के पास।
और अंटी पड़ी होती है
अलमारियों, अलगनियों से लेकर
बेडरूम की कुर्सियों पर
साड़ियां हर तरह की,
घर की, बाहर की
पार्टियों की, कार्यालयों की।
और भरा पड़ा है
इनकी मैचिंग का सामान।
क्यों न हो बहुतायत इनकी
आखिर जीवन चलता है इनसे
और चलता है रोज का कार्यव्यवहार।
लेकिन तनावों से मुक्ति पाकर
फुर्सत के दिनों, पलों में
करने को आत्म साक्षात्कार
देखने को अपना मूल स्वरूप
खोलते हैं हम पुराना संदूक।
हाथ फेरते हैं एक-एक चीज पर
और ठिठक, सिहर जाते हैं अंत में,
सबसे नीचे रखी
भारी भरकम बनारसी साड़ी तक।
छू-छू कर रोमांचित होते रहते हैं
अपनी ही स्मृतियों के खण्डहरों के बीच
अजनबी पर्यटकों की भांति घूमते हुए
और फिर कोई आहट, आवाज, पुकार
विवश करती है।
धीरे से संदूक जमाने के लिए
और पुराना ताला जड़ने को
जिसकी चाबी कभी घूमती नहीं
‘हममें से प्रत्येक का मन
एक पुराना संदूक है।’
बनारसी साड़ी की तरह
सहेजा छिपाया है ’पहला प्यार’
जड़ा है मन के संदूक पर
नैतिकता, परम्परा का ताला
जिसकी चाबी गुम नहीं हुई
कहीं रखी है बहुत ध्यान से
पर आसानी से मिलती भी नहीं।


वंदना राठौर
गुरूद्वारा के पीछे
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जगदलपुर (बस्तर)
मो.-09406407899